चेन्नई. सुंदेशा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंतसागर ने कहा प्रेम सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ तत्व है। हालांकि प्रेम के नाम पर ही सबसे अधिक दुव्र्यवहार हो रहा है। धोखा दिया जा रहा है और लोग वासना की तड़प बुझाने को ही प्रेम समझ रहे हैं।
आदमी प्रेम के नाम पर ही धोखा खा रहा है। प्रेम की ताकत के सामने संसार झुकता है। रावण ने वासना के चलते ही सीता का अपहरण किया था। उसे राम ने नहीं उसके काम ने मारा था। हिरणी प्रेम के कारण अपने बच्चे को बचाने के लिए सिंह का सामना करती है और सफल भी होती है।
मानतुंग आचार्य का कहना है कि सर्वशक्तिमान मानव को वासना के नाम पर गड्ढे में गिरने नहीं दूंगा। हम दुर्गति में भटकने के लिए पैदा नहीं हुए। यदि परमात्मा बनना है तो ऊर्जा को ऊध्र्वगामी बनाओ। ऊर्जावान पुरुषों एवं राम, महावीर का ध्यान व स्मरण करो।
परमात्मा के ध्यान से स्वयं को चार्ज करो। इससे हमारी आत्मा को इस अंधकार में फिर से न भटकना पड़े। राम की भांति संयम के तीर से कामना-वासना का अंत करो। जिस प्रकार ऑक्सीजन के अभाव में जीवन व्यर्थ है उसी प्रकार बिना धर्म के जीवन नरक है।
प्रेम वही कर सकता है जो दूसरे प्राणियों को महत्वपूर्ण मानता है। शक्ति भक्ति के साथ और भक्ति श्रद्धा के साथ हो। श्रद्धा प्रेम के साथ हो तो आत्म परमात्म बन जाता है।