चेन्नई. एसएस जैन संघ ताम्बरम में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि क्रोध से हमारी पुरानी पहचान है। यदि कोई आपका अहित कर देता है तो आप उसे शत्रु के रूप में देखते है। उससे सावधान रहते है और अगर वो आपके घर में प्रवेश करे तो आप उसे धक्के मार कर घर से बाहर निकाल देते है।
क्रोध भी प्रेम संबंध समाप्त करने वाला भयंकर दुश्मन है। इसे बाहर निकालना है। क्रोध बारुद का कारखाना है। बारुद में चिंगारी लगते ही चंद मिनटो में समाप्त हो जाता है। क्रोधी मनुष्य माता पिता, भाई बहन, गुरु शिष्य को भी मारने में नहीं हिचकिचाता है। क्रोधी खुद भी जलता है और दूसरो को भी जलाता है। उपकारी के उपकार को भूल जाता है।
हर मानव ऊर्जा का पुंज है। जब हम क्रोध करते है तो ये ऊर्जा क्रोध में बदल जाती है। व्यक्ति गिर जाता है। यही ऊर्जा क्षमा में लगती है तो ऊध्र्वगामी हो जाती है। साध्वी अपूर्वा ने कहा कि जिनकी भक्ति हमारे भीतर के ताप-सेताप को दूर कर देती है।
शांत स्वस्थ्य और प्रसन्न बना देती है। तीर्थंकर शब्द विशिष्ट अहोभाव उत्पन्न करता है। शीतलनाथ हमारे भीतर आनंद उत्पन्न करने वाले है।