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प्रिय धर्मी के साथ में दृढ़धर्मी भी बनना जरुरी है: जयधुरंधर मुनि 

प्रिय धर्मी के साथ में दृढ़धर्मी भी बनना जरुरी है: जयधुरंधर मुनि 

वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में चातुर्मासार्थ विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा कि जिनवाणी श्रवण कर उस पर अटूट आस्था विफल विश्वास, सच्ची श्रद्धा रकता हैl  वह श्रद्धा के बिना किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं होती है l अवश्य ही सिद्धि को प्राप्त करता है l बिलकुल भी शंका पैदा नहीं होनी चाहिए l

व्यक्ति को यही चिंतन रहना चाहिए जिनेश्वर भगवन ने जो कहा, जो प्ररुपित किया, वह सत्य है, निशंक है और त्रिकाल अर्थात भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्य काल में उसी रूप में ग्रहण करने योग्य है । किसी विषय पर जिज्ञासा होना गलत नहीं है लेकिन शंका नहीं होनी चाहिए।

मुनि ने कहा दो तरह के व्यक्ति होते है – एक दृढ़ धर्मी और दूसरा प्रिय धर्मी। व्यक्ति को प्रियधर्मी के साथ ही दृढ़धर्मी भी बनना चाहिए l दृढधर्मी व्यक्ति अपने प्राणों को त्यागने के लिए तैयार रहता है पर व्रत में दोष नहीं लगता हैl

हंस भूखा मर जाता है परंतु कभी कंकर को नहीं चुगता है। सोने को यदि आग में डाल दिया जाता है तो वह जलकर के राख नहीं बनता अपितु उसमें और ज्यादा चमक आ जाती है। ठीक इसी प्रकार श्रावक भी संकट के समय और ज्यादा दृढ़ बन जाता है।

जैसे एक चंदन काटे जाने पर भी सुगंध नहीं छोड़ता इक्षु किसने पर भी मिठास नहीं छोड़ता, उसी प्रकार से चाहे कितना ही संकट क्यों ना आए श्रावक को अपने आचार-विचार को नहीं छोड़ना चाहिए। परीक्षा की घड़ी में ही वास्तव में अपनी दृढ़ धर्मिता, कष्ट सहिष्णुता एवं निर्भीकता दिखानी चाहिए।

मुनिवृंद का रविवारीय प्रवचन दोपहर २ बजे से ४ बजे तक घर धर्म की प्रयोगशाला विषय पर होगा l प्रातःकाल 7.30 बजे अणुप्पेहा ध्यान कक्षा होगा और 9 बजे से 12 बजे बच्चों के लिए संस्कार शिविर का आयोजन भी रखा गया है l

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