चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि प्रमाद आत्मा का शत्रु है,जीव को अधोगति में ले जाता है प्रमादी को हर जगह भय होता है पर अप्रमादी को नहीं।
भगवान महावीर के सिद्धांत सम्यक दर्शन की ओर ले जाते हैं। विकृतियों के प्रति चिंतन और स्व के प्रति जागरूकता की आवश्यकता है। स्वयं से हमें साक्षात्कार करना होगा। जीवन में रहकर हमें कहीं न कहीं ऐसी शैली को विकसित करना होगा जो हमें कर्तव्यपूर्ण और बुद्धियुक्त जीवन जीने की प्रेरणा दे सके।
आसक्ति के अवसरों के बीच रहकर अनासक्ति का दुर्लभ कार्य मनुष्य को करना होगा। जीवन में यदि दुख वेदना और पीड़ा है तो इसका सृजन हमने ही किया है। अधिक ममता और इच्छा ही वेदना के कारण है। ममता भाव को छोडक़र समता भाव को बढ़ाना होगा। तभी जीवन को शांतिमय बनाया जा सकता है। हम साधना के लिए समय नहीं निकाल पाए इसलिए साधना के क्षेत्र में स्वविवेचना जरूरी है। अपूर्वा ने कहा कि मानव जीवन कुश की नोक पर ओस की बूंद के समान है।