मुनिश्री ज्ञानेन्द्रकुमार के सान्निध्य में मनाया गया बोधि दिवस*
आचार्य श्री महाश्रमण के सुशिष्य मुनिश्री ज्ञानेन्द्रकुमार ठाणा 3 के सान्निध्य में स्थानीय तेरापंथ सभा भवन, साहुकारपेट में तेरापंथ धर्मसंघ के आध्यप्रर्वतक आचार्य श्री भिक्षु का 294वॉ जन्मोत्सव, 262वॉ बोधि दिवस के रूप में मनाया गया|
धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री ज्ञानेन्द्रकुमार ने कहा कि *जब – जब धर्म का बिखराव होता हैं, तब – तब धरती पर महापुरुषों का जन्म होता हैं|*
भगवान महावीर के निर्वाण के बाद लगभग 600 वर्ष बाद जैन धर्म दो भागों में विभक्त हो गया – श्वेतांबर और दिगंबर! निर्माण की 19वीं शताब्दी आते आते 107 भागों में जैन धर्म बंट चुका था| विक्रम संवत 1783 को राजस्थान कांठा क्षेत्र के कंटालिया में साधारण परिवार में माँ दीपा की कुक्षी में बालक भीखण का जन्म हुआ| सामान्य परिस्थितियों में लालन पालन के बाद युवा अवस्था में आचार्य रघुनाथ के पास वैराग्य भाव से दीक्षा स्वीकार की| उत्पातिया बुद्धि के आधार पर लगभग 5 वर्षों में ही आगमों का गहन अध्ययन कर लिया|
मुनि श्री ने आगे कहा कि *जब व्यक्ति का प्रबल पुण्योदय होने वाला होता हैं तो योग भी सामने चल कर आते हैं|* वि. सं. 1814 में राजस्थान राजनगर के श्रावकों ने आगम सम्मत आचार विचार नहीं होने के कारण साधुओं को वन्दना व्यवहार बन्द कर दिया| आचार्य रघुनाथजी के कहने पर मुनि भीखण राजनगर में चातुर्मास हेतु गये और *प्रभावशाली व्यक्तिव के धनी ने तार्किक बुद्धि के आधार पर श्रावकों का वन्दना व्यवहार पुन: शुरू करवाया!* लेकिन अचानक रात्रि में मुनि भीखण को तेज बुखार आ गया| उन्होंने आत्मचिंतन किया और मंथन के आधार पर निष्कर्ष निकाला की साधुओं के आचार विचार आगम सम्मत नहीं है| चातुर्मास सम्पन्नता के बाद आचार्य रघुनाथजी से निवेदन किया, लेकिन उन्होंने पांचवें आरे का कह कर उनकी बातों को टाल दिया|
मुनि श्री ने आगे कहा कि बहुत समय तक आचार्य श्री रघुनाथजी के नहीं मानने पर वे धर्म संघ से अलग हो गए| उनका कोई पंथ चलाने का नहीं अपितु आत्मचिन्तन था कि *मर पुरा देस्या, आत्मा का कारज पुरा करस्या!* भगवान महावीर की वाणी के आधार पर संयम साधना का निर्वहन कर मृत्यु को प्राप्त करेंगे| लेकिन नियती को कुछ अलग ही योग था, शुरूआती वर्षों की कठिनाईयों से आगे निकल कर लोग उनके साथ जुड़ने लगे, साधु – साध्वी के रूप में उनके सहगामी बनने लगे, अनुयायी के रुप में उनका अनुसरण करने लगे|
मुनि श्री ने विशेष पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जिस पगदड़ी पर मुनि भीखण आत्म साधना के लिए निकल पड़े| *वह पगदड़ी, सड़क, मार्ग और आज “तेरापंथ धर्मसंघ” राजपथ बन चुका हैं|*
मुनि श्री ने आगे कहा कि आचार्य भिक्षु ने भगवान महावीर ने जो कहा, बतलाया, पथदर्शन दिया, उन्हीं को उन्होंने अपनाया, आत्मसात किया और जन मानस को भी उस मार्ग पर चलने के लिए उत्प्रेरित किया| उनकी तार्किक बुद्धि से आगमों का वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में बताने के आधार पर धीरे धीरे अन्य साधु समुदाय भी आगम सम्मत आचार विचार पर यथायोग्य चलने का प्रयास करने लगे एवं *जैन धर्म का बिखराव ठहर गया और आज मात्र चार भागों तक सिमट गया|
मुनि श्री ने आचार्य भिक्षु के अनुयायीयों को विशेष पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि *सत्य के मार्ग पर कुछ कठिनाईयाँ आ सकती हैं, लेकिन हमें अपने आराध्य की आराधना करते हुए उस सत्य रूपी राजपथ को नहीं छोड़ना चाहिए|* आचार्य श्री भिक्षु को आज ही के दिन आत्म बोधि की प्राप्ति हुई थी, उसी के आधार पर आज के दिन को बोधि दिवस के रूप में मनाया जाता हैं|
मुनि श्री विमलेशकुमार ने आज से प्रारम्भ सवा पांच करोड़ जप अनुष्ठान के बारे में बताते हुए कहा कि *आचार्य भिक्षु की तरह आचारवान, विचारवान, ज्ञानवान बनते हुए हम भी अपने जीवन में बोधि को प्राप्त करे|
कार्यक्रम का शुभारंभ मुनिश्री ज्ञानेन्द्रकुमारजी के मंगल मंत्रोच्चार, नवीन बोहरा के मंगलाचरण गीत के साथ हुआ| प्रवचन कार्यक्रम के दौरान मुनि श्री ने विधिवत् जप अनुष्ठान का प्रारम्भ करवाया| जय तुलसी संगीत मंडल की बहनों ने आचार्य भिक्षु की अभिवंदना में गीत की प्रस्तुति दी| तेरापंथ सभा के मंत्री श्री प्रवीण बाबेल ने कार्यक्रम का सफल संचालन किया| तपस्वीयों ने तपस्या का प्रत्याख्यान किया|
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श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा, चेन्नई