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प्रतिक्रिया विरति से व्यक्ति बनता महान – साध्वी उदितयशाजी

प्रतिक्रिया विरति से व्यक्ति बनता महान – साध्वी उदितयशाजी

 मंगल भावना एवं ज्ञानशाला संवर्धन कार्यक्रम भी हुए समायोजित

Sagevaani.com /चेन्नई: आचार्य श्री महाश्रमणजी की सुशिष्या साध्वीश्री उदितयशाजी ठाणा 4 के सान्निध्य में तेरापंथ सभा उत्तर चेन्नई की आयोजना में तेरापंथ भवन, तंडियारपेट में ‘एक्शन विदाउट रिएक्शन’ – कार्यशाला का रविवार को आयोजन हुआ।

 नमस्कार महामंत्र समुच्चारण से शुभारम्भ कार्यक्रम में समुपस्थित धर्म परिषद् को सम्बोधित करते हुए साध्वीश्री उदितयशाजी ने कहा कि मनुष्य जीवन में स्वाभाविक रूप से कम या ज्यादा क्रिया की प्रतिक्रिया होती ही है, एक्शन का रिएक्शन होता ही है। वैसे दुनिया में असम्भव कुछ भी नहीं है। जब हम संभलते हैं, सहज होते हैं, अपने आप को तराशते हैं, तो हर क्रिया की प्रतिक्रिया में भी कुछ अच्छा ढूंढ लेते हैं और अपना नव निर्माण कर लेते हैं।

 साध्वीश्री ने वीतराग कल्प आचार्य श्री मघवागणी जी, आचार्य श्री महाप्रज्ञजी, वृद्धवादी मुनि के जीवन प्रसंगों के माध्यम से प्रेरणा देते हुए कहा कि _’क्रिया की सकारात्मक प्रतिक्रिया जीवन के नवीन विकास का निमित्त बनती है।’_ अतः हम पॉजिविटी के साथ एक्शन के समय भी विदाउट रिएक्शन में रह सकते हैं।

  साध्वी भव्ययशाजी ने कहा कि विषमता से ह्रांस होता है, हानि होती है, वही समता से विकास होता हैं। मन में चिंतन रखे कि जब मेरी हरकत दूसरे सह सकते है, तो मैं भी उनकी हरकतों को सहन करु। क्रिया की राग-द्वेष मुक्त बनकर प्रतिक्रिया करे।

 साध्वी शिक्षाप्रभाजी ने सुमधुर गीत के साथ कहा कि हम जीवन व्यवहार में मीठा बोले, सरस बोले। प्रतिक्रिया रहित रहकर ही कर्म बंधन से बच सकते है। विदाउट रिएक्शन रहने के लिए सर्वेन्द्रिय संयम मुद्रा का प्रायोगिक प्रयोग भी करवाया।

  मंगल भावना समारोह

स्वरूप चन्द दाँती ने बताया कि तंडियारपेट में नवदिवसीय अध्यात्म वर्धक प्रवास पर तेरापंथ सभा उत्तर चेन्नई के अध्यक्ष इन्दरचन्दजी डुंगरवाल, मंत्री देवीलालजी हिरण, ट्रस्ट बोर्ड प्रबंध न्यासी पूनमचन्दजी माण्डोत इत्यादी अनेकों श्रावक समाज ने दो सत्रों में समागत कार्यक्रम में साध्वीवृन्द के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए मंगल भावना सम्प्रेषित की।

  ज्ञानशाला संस्कार निर्माण की शाला

– शनिवार शाम ज्ञानशाला ज्ञानार्थीयों को प्रशिक्षण प्रदान करते हुए साध्वी संगीतप्रभाजी ने कहा कि ज्ञानाशाला संस्कार निर्माण की शाला है। जीवन के सम्यक नियोजन की शाला है। ज्ञानशाला का ज्ञानार्थी अध्यात्म के साथ व्यावहारिक धरातल पर भी परिपूर्ण बनता है। ज्ञानार्थीयों ने आध्यात्मिक संकल्प स्वीकार किए। प्रशिक्षकों, ज्ञानार्थीयो ने साध्वीवृन्द की अभिवंदना की।

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