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ज्ञान वाणी

प्रकाशनार्थ समाचार नशा करता है जीवन की खुशियों का नाश- राष्ट्र-संत ललितप्रभ

प्रकाशनार्थ समाचार नशा करता है जीवन की खुशियों का नाश- राष्ट्र-संत ललितप्रभ
सूरत। कौने से कौने तक खचाखच भरा साकेत मार्केट का पांडाल…प्रवचन श्रवण करते हजारों युवा…राष्ट्र-संत महोपाध्याय ललितप्रभ सागर महाराज का कार से पहले लाएं जीवन में संस्कार पर दिल-दिमाग को झकझोरने वाला संबोधन…प्रवचन सुनते-सुनते लोगों की हिली आत्मा…मंच पर पहुँचे लोग…नशे के पाउच फाड़ फैंके…आजीवन नशा मुक्त जीवन जीने का लिया संकल्प…पतियों ने पत्नियों को दिया उपहार – आज से नहीं करेंगे किसी भी तरह का नशा…सुनकर महिलाओं की आँखों में आया पानी और संत से कहा – जीवन भर रहेंगे आपके ऋणी…आप आए, सबका जीवन बदल गया…यह नजारा था मंगलवार को शहर के पर्वत पाटिया स्थित साकेत टेक्सटाइल मार्केट परिसर में।
राष्ट्र-संत समस्त सूरत खरतरगच्छ जैन श्री संघ एवं ललितचन्द्रप्रभ सूरत प्रवास व्यवस्था समिति के तत्वावधान में आयोजित प्रवचनमाला के चैथे दिन सत्संगप्रेमियों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जहाँ एक अच्छी आदत जीवन को ऊँचाइयाँ दिया करती है वहीं एक बुरी आदत अच्छी जिंदगी को बर्बाद कर देती है।
आपका एक गलत शौक पूरे परिवार को शोक में डाल सकता है। व्यक्ति भूलचूककर नशा करने की आदत जीवन में न डाले क्योंकि नशा नाश की निशानी है। नशा दांत से लेकर आंत तक, दिल से लेकर दिमाग तक नुकसान ही नुकसान करता है। अगर इन्हें जीते-जी छोड़ देंगे तो हम जीत जाएंगे नहीं तो ये एक दिन मौत बनकर हमें छोड़ देंगे।
भीतर के भगवान को न चढ़ाएँ नशा-संतप्रवर ने कहा कि जिनके खान-पान का कोई पता नहीं होता उनके खानदान का भी कोई पता नहीं होता। इंसान मंदिर के भगवान को नशा नहीं चढ़ाता तो फिर भीतर के जीते-जागते भगवान को नशा क्यों चढ़ा देता है। जब मैं ग्यारह साल की उम्र में संसार को छोड़ सकता हूँ तो क्या आप इक्यावन साल की उम्र में एक बुरी आदत को भी छोड़ नहीं सकते। पाँच साल का छोकरा समझ गया कि नशा करना बुरी बात है लेकिन पचपन साल का डोकरा अभी भी समझ नहीं पाया कि नशा करना बुरी बात है।
उन्होंने कहा कि एक महिला शराबी पति की पत्नी बनने की बजाय विधवा बनना ज्यादा पसंद करेगी क्योंकि शराबी के साथ रहने की बजाय विधवा रहने में ज्यादा सुख है। उन्होंने बहिनों से कहा कि अगर घर में कोई नशा कर रहा है तो एक बार वे घर में युद्ध जैसा मोर्चा खोल लें। खाना बनाना और खिलाना छोड़ दें। जब तक घर व्यसनमुक्त न हो जाए तब तक चुपचाप न बैठें।
संस्कारों के प्रति जागरूक रहिए-अभिभावकों को प्रेरणा देते हुए संतश्री ने कहा कि बच्चों को कार से पहले संस्कार दें। बच्चों को आजादी दें, पर अंकुश भी रखें। उन्हें गलत संगत से बचाकर रखें। शराबी बाप भी अपने बेटे का शराबी बनाना नहीं चाहेगा, पर शराबी दोस्त अपने दोस्त को शराबी बनाकर ही छोड़ेगा। उन्होंने कहा कि अगर बच्चे व्यसनों से घिर गए हैं तो हिम्मत करके उन्हें कहें कि वे या तो व्यसन छोड़ें या घर। बिगड़ेल बच्चों के बाप कहलाने की बजाय बिना बच्चों के  रहना ज्यादा अच्छा है। साथ ही उन्हें सम्पत्ति के हक से भी वंचित रखें।
अगर आप बच्चों को गलत दिशा में जाने से रोक नहीं सकते तो कृपया करके बच्चों को पैदा ही न करें। अगर आप खुद व्यसन करते हैं तो सावधान! आने वाले कल में आपके बच्चे आपकी बुरी आदतों के चलते आपका नाम लेने में भी शर्म महसूस करेंगे। याद रखें, व्यक्ति की सच्ची दीक्षा उस दिन होती है जिस दिन वह बुरी आदतों का त्याग कर अपने संस्कारों को सुधार लेता है।
संकल्प जगाइए, नशा हटाइए-संतश्री ने कहा कि जिस इज्जत को बनाने में सौ साल लगते हैं, नशे की एक आदत उसे पूरा मटियामेट कर देती है। शुरू में गम को भूलाने वाला नशा बाद में सबसे बड़ा गम बन जाता है। उन्होंने कहा कि गुटखा में से ट हटाइए, बोलिए फिर भी जी करे तो प्रेम से खाइए। दुनिया की सारी चीजें खींचने से लम्बी होती है, पर सिगरेट को खीचों तो…केवल वही छोटी नहीं होती वरन् जिंदगी छोटी होती है। व्यक्ति केवल एक बार इसे बनता हुआ देख ले तो उसे अपने आप नशे से नफरत हो जाएगी।
व्यक्ति बुरी सोहबत से बचे, व्यसनों के परिणामों पर चिंतन करे, संकल्प शक्ति जगाए और गुटखा, सिगरेट, शराब जैसे दुव्र्यसनों को हमेशा के लिए लाइफ से गेट आउट कर दे। जब संतप्रवर ने झोली फैलाकर सत्संगप्रेमियों से दुव्र्यसनों का त्याग करने की गुरुदक्षिणा मांगी तो सैकड़ों युवाओं ने आजीवन नशे के त्याग करने के संकल्प लिए और सभी भाई-बहिनों ने हाथ खड़े कर नशे से सदा दूर रहने का मानस मनाया। इस अवसर पर संतप्रवर ने हम सबका एक ही संदेश: व्यसन मुक्त हो सारा देश का नारा दिया।
इससे पूर्व मुनि शांतिपिय सागर ने कहा कि हम अपने भीतर के भावों को सदा निर्मल और पवित्र रखें। अच्छे भावों में जहां स्वर्ग का वास होता है वहीं बुरे भावों में नरक का। हम परिवार में प्रेम घोलें और औरों का सहयोग करें। साथ में रहना प्रकृति है, टूटकर जीना विकृति है, पर प्रेम से रहना भारतीय संस्कृति है। जो खुद के लिए जीता है उसका मरण होता है, पर औरों के काम आता है उसका स्मरण होता है।
इससे पूर्व अतिथियों ने दीप प्रज्जवलित किया। इस दौरान निर्मल बाफना परिवार द्वारा सभी को साहित्य की प्रभावना दी गई।
बुधवार को होंगे प्रवचन कार्यक्रम-सह संयोजक सुरेष कुमार मंडोवरा और गौतमचंद श्रीश्रीमाल ने बताया कि बुधवार को भी राष्ट्र-संतों के सुबह 9.30 बजे साकेत मार्केट में प्रवचन कार्यक्रम आयोजित होंगे।

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