Share This Post

ज्ञान वाणी

पुरूषार्थ से बदल सकते हैं भाग्य को: पदमचंद जी आंचलिया

पुरूषार्थ से बदल सकते हैं भाग्य को: पदमचंद जी आंचलिया
मण्डिया के तेरापंथ भवन में पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व के पांचवें दिन अणुव्रत चेतना दिवस पर आराधकों को संबोधित करते हुए उपासकजी पदमचंद जी आंचलिया ने कहा कि अगर भाग्य के भरोसे रहकर पुरुषार्थ नहीं करते हैं, तो कर्मों का उदय यानि विपाकोदय  नहीं होता है! वह प्रदेशो मे आकर चले जाते हैं! भाग्य को जगाने के लिए हमें पुरुषार्थ करना अपेक्षित है! हमारे भाग्य को लिखने वाले हम स्वयं है!
मिथ्यात्व- विपरीत श्रद्धा ,गलत मान्यता ! उपासकजी ने  धर्म की प्रक्रिया के छह- द्वार बताये – सुलभ बोधि, सम्यक् दृष्टि, देशवती, महाव्रती , वीतराग, अयोगी ! पूर्व मान्यताओं, धारणाओं को तोड़े बिना हम विकास नहीं कर सकते हैं! मिथ्या -विपरीत मान्यताओं को तोड़े बिना सम्यक् दृष्टि  बन नहीं सकते! जीवन की सफलता का आधार सम्यक दृष्टि है! सम्यक् दर्शन  से सम्यक् ज्ञान प्राप्त होता है ! सम्यक ज्ञान प्राप्ति के बाद ही हम सम्यक आचरण कर सकते हैं ! उत्थान, कर्म , बल ,वीर्य और पुरुषार्थ -इनसे कर्म सधता है! भाग्य का उदय होता है!
 उपासकजी स्वरूपचंद जी दांती  ने भगवान पारसनाथ की जीवनी पर गीतिका प्रस्तुत की ,भगवान महावीर स्वामी के 27 भव का वर्णन करते हुए पहले तीन भव के बारे में विस्तार से समझाया !
उपासक जी राजमलजी बोहरा ने अणुव्रत यानी छोटे-छोटे नियम! मानव धर्म के लिए आचार्य तुलसी ने अणुव्रत रूपी आंदोलन चलाया! सामाजिक व्यवस्था के लिए अणुव्रत आंदोलन बहुत जरूरी है! भ्रूण हत्या ना करें! मानव एकता को  विशेष ध्यान में रखकर जाति, रंग का भेदभाव ना करते हुए यह आंदोलन चलाया! हमें व्यसनमुक्त जीवन जीना है! धर्म के दो स्वरूप हैं -उपासना और चारित्र! सभी ने अणुव्रत के संकल्प स्वीकार किये| तपस्वीयों ने तपस्या का प्रत्याख्यान किया|

 

       स्वरूप  चन्द  दाँती
विभागाध्यक्ष  :  प्रचार – प्रसार
आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar