ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा पुण्य का गलत उपयोग मत करो। पुण्य का भुगतान करते समय यह स्मृति होना चाहिए कि मेरे पाप का बंध तो नहीं हो रहा। यद्यपि पुण्य भी मोक्ष मार्ग में बाधक है। बंधन तो बंधन ही होता है। चाहे लोहे का हो या सोने का हो। पुण्य को एकत्रित करना भी जरूरी है। समयानुसार छोडऩा भी जरूरी है।
जब तक पुण्य प्रबल हैं तब तक कोई भी कष्ट नहीं दे सकता। पुण्य कमजोर होते ही व्यक्ति गिर जाता है। आध्यात्म जीवन को टिकाने के लिए चार विकल्प है। विचारबल, श्रद्धाबल, संयमबल और तीनों को पुष्ट करने पर आता है त्यागबल। जितना त्याग बढ़ेगा उतना पुण्य मजबूत होगा। साध्वी ने कहा कि 9 प्रकार के पुण्य बांधकर 42 प्रकार के भुगतान किया जाता है।
साध्वी अपूर्वा ने कहा कि संसार दुख से भरा है। एक-एक जीव अनेक दुखों से पीडि़त है। जिस प्रकार पर्वत दूर से रमणीय नजर आता है परन्तु पास से काजल के समान। काले शिखर, खड़ी चढ़ाई से भयानक लगता है। इसी प्रकास संसार में भी लडाई, झगड़ा, धोखा आदि होता रहता है।