चेन्नई. वेपेरी स्थित जयमल जैन पौषधशाला में जयधुरंधर मुनि ने कहा कि संसार में दो सारभूत तत्व होते हैं जीव और अजीव। जीव के अस्तित्व को स्वीकार करने वाला ही धर्म और कर्म पर विश्वास करता है।
जीव तत्व पर यथार्थ श्रद्धा न होने पर ही आत्मा का कल्याण संभव है। आत्मा को भले ही आंखों से नहीं देखा जा सकता है पर उसको अनुभूति के आधार पर सिद्ध किया जा सकता है।
उन्होंने 9 तत्व के अंतर्गत पुण्य और पाप पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पुण्य जीव के विकास के लिए सहायक सिद्ध होता है। पुण्य और पाप पर ही यह संपूर्ण जगत टिका हुआ है। यही सुख दुख के मूल कारण होते हैं।
साधक का लक्ष्य पुण्य की अभिवृद्धि करते हुए अनावश्यक पापों से बचने का रहना चाहिए। पाप करते समय जीव को पता नहीं चलता पर उसे क्षय करने के लिए पुरुषार्थ करना पड़ता है । इस अवसर पर जयपुरंदर मुनि ने भी अपने विचार व्यक्त किए ।
धर्म सभा का संचालन ज्ञानचंद मुनोत ने किया। स्वाध्याय शिविर के अंतर्गत 50 श्रावक-श्राविकाओं ने गुरु भगवंतो से प्रशिक्षण प्राप्त किया। रविवार को स्वाध्याय शिविर का समापन होगा।