‘मेधावी छात्र सम्मान समारोह’ भी हुआ
चेन्नई. माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में विराजित आचार्य महाश्रमण ने कहा नौ तत्वों में आठवां तत्व बंध होता है। बंध पुण्यात्मक और पापात्मक दोनों होता है। आत्मा अनादिकाल से इन बंधों से जकड़ी हुई है जो आत्मा के बार-बार जन्म-मृत्यु का भी कारण बनती है। जीव की किसी भी प्रवृत्ति से कुछ सूक्ष्म कण आत्मा से चिपकते हैं और आत्मा से इनसे बंधती चली जाती है।
उन्होंने कहा कि आठ कर्मों में चार कर्म पापात्मक और शेष चार कर्म पापात्मक और पुण्यात्मक दोनों होते हैं। पाप कर्म का बंध करने वाला मूल कर्म मोहनीय कर्म होता है जिसके कारण आत्मा से पापकर्म का बंध अत्यधिक होता है। निर्जरा के साथ-साथ पुण्य का भी बंध होता है। बंध पुण्य रूप में हो अथवा पाप रूप में, बंध तो बंध ही होता है। बंधे कर्मों के उदय में आने पर ही कोई जीव अधिक विकसित होता है तो कोई कम विकास वाला होता है। कोई बुद्धिमान तो कोई मूढ़ हो जाता है।
आचार्य ने कहा दूसरों को कष्ट देने से असात वेदनीय कर्म का बंध होता है। जब वह कर्म उदय में आता है तो आदमी को कष्ट उत्पन्न होता है। आदमी पापकर्मों से जितना अपनी आत्मा को बचा सके, उतना अच्छा हो सकता है और आगे का जीवन भी अच्छा हो सकता है। मूल मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्य ने उपरला बखान में राजा मुनिपथ के कुछ प्रसंगों का भी वर्णन किया।
तदुपरान्त तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम द्वारा आयोजित ‘मेधावी छात्र सम्मान समारोह’ के लिए उपस्थित विद्यार्थियों को आचार्य ने पाथेय देते हुए कहा कि ज्ञान के क्षयोपशम से ही विद्यार्थी मेधावी बने हैं। जीवन में अच्छे संस्कार आएं और अच्छे ज्ञान का निरंतर विकास होता रहे तो ‘आगे बढ़ो-शिखर चढ़ो’ की बात जीवन में चरितार्थ हो सकती है।
विद्यार्थी ज्ञान और संस्कार में खूब आगे बढ़ें और दूसरों को लाभान्वित करने का प्रयास करें। आचार्य के आशीर्वाद के उपरान्त टी.पी.एफ. के अध्यक्ष प्रकाश मालू, समारोह के सहसंयोजक व टी.पी.एफ. चेन्नई के मंत्री कमल कटारिया तथा आई.आर.एस. विजय कोठारी ने भी भावाभिव्यक्ति दी। निर्मला छल्लाणी ने आचार्य से 30 की तपस्या का प्रत्याख्यान लिया।