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ज्ञान वाणी

पाप को पापरूप में पहचानें : साध्वी धर्मलता

पाप को पापरूप में पहचानें : साध्वी धर्मलता

चेन्नई. ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा पाप का फाटक बंद करें। डरना है तो किसी अन्य से नहीं पाप से डरें। लिफ्ट का दरवाजा बंद नहीं करें ताकि ऊपर न जा सकें। पाप का फाटक बंद नहीं होगा तो जीवन की ट्रेन सुख की पटरी पर कैसे दौड़ेगी, अत: प्रतिदिन अपना निरीक्षण करें।

पाप को पापरूप में पहचानें एवं आत्मसाक्षी से उसे स्वीकारें। हृदय से पश्चाताप करने से ही पाप का फाटक बंद हो पाएगा। मन की गांठें खोलो और पापों को धो डालो। भूल को छिपाने वाला इन्सान भव बिगाड़ लेता है जबकि भूल स्वीकार करने वाला स्वयं को सुधार लेता है। पाप चाहे काम रूप में हो या कल्पना रूप में, उसे स्वीकारना जरूरी है।

यह न सोचें मैं पाप एकांत में एवं गुप्त में कर रहा हूं, कर्म की अदालत इतनी सूक्ष्म है कि मन से बुरा सोचा या सपने में भी किसी को गिराने, मारने, लडऩे की सोचो, कर्म की अदालत उसे नरक व तिर्यंच के स्टेशन पर पहुंचा देगी। इन्सान के लिए बेहतर है कि वह पाप की अपील तैयार कर ले, और उस पिंड से छूट जाए। पाप का घड़ा फूटे बिना नहीं रहता, चाहे दुर्योधन को या दुशासन का। कर्ता ही भोक्ता है। जैसी करनी वैसी भरनी आज नहीं तो कल।

साध्वी अपूर्वाश्री ने कहा व्यक्ति परदेश, आकाश या पाताल कहीं भी जाए या रहे कर्म उसे कहीं भी नहीं छोड़ेगा।

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