चेन्नई. एमकेबी नगर जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने बताया कि वर्तमान में बढ़ती वृद्धाश्रम की संख्या से हमेें खुश नहीं होना चाहिए। ये समाज के लिए कलंक हैं। ये वृद्धाश्रम आज घटते कृतज्ञता के भाव के प्रतीक हैं। जो संतान बात-बात पर अपने माता-पिता की अवहेलना करती है और दुत्कारते हैं एवं अपमानित करते हैं ऐसी संतानों को जीवन में कदम-कदम पर विपत्तियों का सामना करना पड़ता है।
माता-पिता के उपकारों को समझना बहुत जरूरी है। जो मानव उनके उपकारों को भूल जाता है उसके समान कृतघ्न कोई नहीं। मंदिर की शोभा भगवान से, रात्रि की शोभा चंद्रमा से, दिन की शोभा सूर्य से, वृक्ष की शोभा फूलों से और घर की शोभा मां-बाप से होती है।
साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा सदैव संतों के संपर्क में रहना चाहिए क्योंकि उनका समागम मन के संताप-परिताप को दूर कर आनंद की वृद्धि कर देता है एवं चित्त को संतोष देता है। सद्गुरु की संगत पापी को भी पुनीत एवं अधम आत्मा का उद्धार कर पूजनीय बना देती है।
यह विषयासक्त को विरक्त, भोगी को योगी, शैतान को संत, हैवान को इनसान, इनसान को भगवान एवं नास्तिक को आस्तिक बना देती है। सज्जनों की संगति से दोष भी गुणरूप हो जाते हैं और दुर्जनों की संगत से सद्गुण भी दुर्गुणों में बदल जाते हैं। मानव जैसी संगत में जाकर बैठता है उस पर वैसी ही रंगत आए बिना रहती नहीं है।