साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने पर्यूषण पर्व के पहले दिन कहा पर्यूषण पर्व जन जन को जाग्रत करने के लिए आता है। इसका लाभ लेकर जीवन को सफल बनाएं। इसका लाभ लेने से चूकना नहीं चाहिए। पर्यूषण के आठ दिनों में मनुष्य अपने आत्मा के हित के लिए जो भी करना चाहे वे कर सकता है।
जीवन की खाली झोली को त्याग नियम से भर लेना चाहिए। सुज्ञान की ज्योति से मनुष्य को अपने अज्ञान के अंधेरे को दूर करना चाहिए। अपनी दिव्य धर्म भावनाओं के साथ पर्यूषण का लोगों को लाभ लेना चाहिए। जब भी ऐसा दिव्य प्रसंग भाग्यशाली आत्मा को प्राप्त होता है तो वह इसका लाभ लेकर जीवन को धन्य बना लेती है।
परमात्मा के प्रति लोगों को भक्ति दिखानी चाहिए। जब तक संतों का प्रवचन चलता हो उठने के बजाय ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। प्रवचन में दिया हुआ समय जीवन को बदल सकता हैं। लेकिन उससे पहले उसे भाव पूर्वक जीवन में उतारने की जरूरत है। पर्यूषण पर्व मनुष्य को धर्म सिखाने के लिए आता है।
जिनके जीवन में धर्म से लगाव है वे आसानी से इस पर्व का महत्व समझ सकते हैं। लोगों के प्रति अगर गलत भाव मन में होते हंै तो उन्हें निकालने के लिए यह पर्व आता हैं। जो इसका लाभ उठाते हैं उनका जीवन बदल जाता हैं। सागरमुनि ने कहा पर्यूषण के समय आत्मा ठहर जाती है। इस दौरान कर्म रूपी चक्र में घूमना बंद कर आत्मा को रोक देना चाहिए।
जीवन को ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए ही यह मौका मिलता हैं। पर्यूषण पर्व यही संदेश देता है कि जीवन को सफल बनाने के लिए इस पर्व को समझना चाहिए। धर्मसभा में संघ के अध्यक्ष आंनदमल छल्लाणी एवं अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे। मंत्री मंगलचंद खारीवाल ने संचालन किया।