तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमणजी की अनुज्ञा से पर्युषण महापर्व की आराधना कराने के लिए पधारे उपासक श्री पदमचन्द आंचलिया (चेन्नई) ने कहा कि किसी एक शब्द पर बार-बार अनुचिंतन करना ही जप कहलाता हैं| यह मनुष्य जीवन हमारा घर अस्थाई निवास है! हमें हमारा स्थाई निवास मोक्ष को बनाना चाहिए!खाने से हम पुष्ट नहीं होते, जबकि उसे पचाने से| जो बहुत पढ़ता हैं, वह ज्ञानी नहीं होता, याद रखने वाला ज्ञानी बनता है! धन कमाने वाला धनी नहीं होता, जो धन के अपव्यय से बचने वाला धनी कहलाता है| हमारी आत्मा आठ कर्मों से बंधी हुई है! एक कथानक के माध्यम से हमें समझाया कि हमें उन कर्मों को कैसे काटना है| धर्म रूपी फावड़ा लेकर हमें खुद को अपने भीतर से आत्मा पर बंधे इन 8 कर्मों को काटने की प्रेरणा दी! हमारे भीतर अनंत शक्ति, चेतना का सागर लहरा रहा है! उन शक्तियों को जागृत करने के लिए! मंत्र जप अवश्य करें! जब असाता वेदनीय कर्म उदय मे आता है! तो हमें शारीरिक कष्ट और दुख को भोगना पड़ता है!
उपासक श्री स्वरूपचन्द दाँती (चेन्नई) ने कहा कि हम चिंतन बहुत करते हैं| पर उसे क्रियान्वित नहीं करते| हम 84 लाख जीव योनि में चक्कर काटते हुए, कितनी ही बार नरक में गए, कितनी बार मनुष्य उत्पन्न हुए हैं, पर स्थाई निवास नहीं बना पाए! इस भव भ्रमण से छुटकारा पाने के लिए गीतिका के माध्यम से हमें विस्तार से समझाया! एक मनुष्य ही ऐसा प्राणी हैं, जो मोक्ष में जा सकता है, साधना के द्वारा मोक्ष को प्राप्त कर सकता हैं|
उपासक श्री राजमल बोहरा (बंगलूर) ने कहा कि हमें कब ,कहां , कैसे, क्यों जप करना चाहिए! उसके बारे में विस्तार से बताया. जीवन को पवित्र बनाने के लिए जप अनुष्ठान जरूरी है| नमस्कार महामंत्र सर्वशक्तिमान मंत्र है! इसकी सिद्धि के लिए मंत्र पर गहरी आस्था होनी चाहिए! जैसे-जैसे साधक श्रद्धा के साथ जप करता है! वैसे-वैसे मंत्र की शक्ति भी बढ़ती है! साधक वाचिक ,उपांशु, मानस, सगर्भ, ध्यान सहित,लय के साथ जप करता है, तो हमारा जप अवश्य सिद्ध होता है!
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