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ज्ञान वाणी

परिश्रम बने हमारा भाई : आचार्य महाश्रमण

परिश्रम बने हमारा भाई : आचार्य महाश्रमण
माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में ठाणं सूत्र के छठे स्थान के पांचवें श्लोक का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने फरमाया कि आदमी पुरूषार्थ करता, पर उसकी भी एक सीमा होती हैं| पुरूषार्थ से सब कुछ नहीं किया जा सकता और न ही सब कुछ प्राप्त किया जा सकता हैं| कई बार पुरूषार्थ से लक्ष्य प्राप्त नहीं होता हैं|
     *भाग्य भरोसे ही नहीं, अपितु करे पुरूषार्थ
   आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि पुरूषार्थी आदमी का लक्ष्मी वरण करती हैं| भाग्य प्रधान न बने, भाग्य भरोसे न बैठे| परिश्रम हमारा भाई हैं| आलस्य छोड़े और अच्छे काम में समय का नियोजन करें, तो गति प्रगति अच्छी होगी| हमारा कोई भाई हो, न हो, पुरूषार्थ को अपना बन्धु अवश्य बनाएं|
   *संसार में है, छ: असम्भव बातें
    आचार्य श्री ने आगे कहा कि छ: बातों में पुरूषार्थ से भी लक्ष्य प्राप्त नहीं होता है| पहली बात है जीव को अजीव बना देना असम्भव हैं| साधारण मनुष्य तो क्या? तीर्थकर या चक्रवर्ती में भी यह सामर्थ्य नहीं है, कि वे जीव को अजीव बना सके| दूसरी बात है अजीव को कोई जीव नहीं बना सकता, यह असम्भव हैं, जैसे डायरी में जीव घुस तो सकता हैं, लेकिन डायरी जीव नहीं बन सकती|
  आचार्य श्री ने तीसरी असम्भव बात को बताते हुए कहा कि एक समय में दो भाषाएँ नहीं बोली जा सकती| अगर सत्य भाषा बोली जा रही हैं, तो मृषा भाषा नहीं बोली जा सकती और मृषा भाषा हैं, तो सत्य संभाषण नहीं|
  *कर्म भोगने में नहीं है, प्राणी स्वतंत्र
  आचार्य श्री ने चौथी बात के बारे में बताया कि आदमी यह सोचे कि मैने जो कर्म का बंधन किया है, चाहे पुण्य हो या पाप, विशेषकर पाप कर्म को भोगु या न भोगु, यह मेरी इच्छा है| पर यह असम्भव हैं,कृत कर्म भोगने ही पड़ेगे| कर्म भोगने में प्राणी स्वतंत्र नहीं हैं|
  आचार्य श्री ने पांचवी असम्भव बात का विवेचन करते हुए कहा कि परमाणु पुदगल का टुकड़ा नहीं किया जा सकता, उसका छेदन, भेदन या दहन भी नहीं किया जा सकता, वह अभेद्य हैं| एक परमाणु पुदगल की अवगाहना एक आकाश पुदगल जितनी है|
   *सिद्ध आत्माएँ भी नहीं जा सकती लोक से बाहर
  छठी बात के बारे में आचार्य श्री ने बताया कि कोई चाहे कि मैं अलोकाकाश में जाऊंगा, यह असम्भव हैंयहां से महाविदेह क्षेत्र में भी चल कर नहीं जाया जा सकता| लोक के बाहर कोई भी गति नहीं कर सकता हैं, यह एक सीमा है और शाश्वत नियम है| लोकांत के बाहर जीव की गति नहीं हैं| सिद्ध आत्माएँ भी लोक से बाहर नहीं जा सकती| इस तरह से इस सृष्टि की ये छ: असम्भव बाते हैं| कोई कहे कि मैरे शब्द – कोष में असम्भव शब्द नहीं है, तो वह ये छ: बाते करके बताए? ये पारिमाणिक भाव है, सार्वभौमिक हैं, नियति हैं, इसे बदला नहीं जा सकता|
   *जन्म के साथ निश्चित है मृत्यु
  आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि इसके अलावा भी और बाते संसार में असम्भव हैं| प्रथम अभवी को भवी नहीं बनाया जा सकतादूसरी जो जीव जन्मा है, उसकी मौत को नहीं टाला जा सकता| चाहे वह वज्र के मकान में घुस जाये, दरवाजे बन्द कर ले, तो भी मौत टल नहीं सकती| चाहे वह दयनीय बन जाए, मुंह में तिनका लेकर काली गाय बन जाए, जन्म के साथ मृत्यु निश्चित हैं|
  आचार्य श्री ने तीसरी बात के बारे में बताया कि संसारी आत्मा हैं, कर्मों का बंधन है, तो मरने के बाद जन्म निश्चित है| असम्भव कार्य में पुरूषार्थ का जोर नहीं चलता है|
  *संभव की दुनिया में हो सत्पुरूषार्थ
  आचार्य श्री ने आगे फरमाया कि आदमी को अच्छे आध्यात्मिक कार्य में पुरूषार्थ करना चाहिए| संभव की दुनिया में सत्पुरूषार्थ हो, विकास की ओर पुरूषार्थ करे|
 *आत्मसाधना में सम्यक्त्व जरूरी : मुख्य मुनिश्री
  मुख्य मुनिश्री महावीर कुमार ने कहा कि साधक को, श्रावक को आत्मसाधना के पथ पर सम्यक्त्व का होना जरूरी है| सम्यक्त्व ऐके के समान हैं, जैसे ऐके विहीन शून्य का कोई मूल्य नहीं, उसी तरह अध्यात्म के क्षेत्र में सम्यक्त्व जरूरी हैं|
 *”पंच कल्प सभाष्य” का हुआ लोकार्पण
  जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित, प्रो. समणी कुसुम प्रज्ञा द्वारा सम्पादित ग्रन्थ *”पंच कल्प सभाष्य”* का लोकार्पण आचार्य प्रवर की सन्निधि में जैन विश्व भारती के पूर्वाध्यक्ष श्री धरमचन्द लूंकड़ एवं श्री रमेशचन्द बोहरा ने किया| प्रो. समणी कुसुम प्रजा ने ग्रन्थ के बारे में जानकारी अवगत  कराते हुए आचार्य प्रवर से आशीर्वर चाहा, कि ग्रन्थ सम्पादन में ओर गति प्रगति करूं| आचार्य प्रवर ने ग्रन्थ के बारे में फरमाया कि यह प्राचीन ग्रन्थ हमारे हाथ में आया है, यह सभी के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता हैं| जैन विश्व भारती आगमों एवं प्राचीन ग्रन्थों का व्यवस्थित प्रकाशन कर रही हैं|
  *बरसात की झड़ी के साथ लगी मासखमणों की लड़ी
  महातपस्वी शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमणजी के श्रीमुख से श्रद्धा की प्रतिमूर्ति श्रीमती संतोष मुथा ने 31, श्रीमती सज्जनबाई रांका ने 30 एवं श्रीमती रेखा मरलेचा ने 29 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया, तो पुरा महाश्रमण समवसरण तपस्या की अनुमोदना में *ऊँ अर्हम्* की ध्वनि से गुंजायमान हो गया| कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार ने किया|
 *✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*
 
स्वरूप  चन्द  दाँती
विभागाध्यक्ष  :  प्रचार – प्रसार

आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास व्यवस्था समिति

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