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ज्ञान वाणी

परम् की प्राप्ति में बाधक राग : आचार्य श्री महाश्रमण

परम् की प्राप्ति में बाधक राग : आचार्य श्री महाश्रमण

*मूच्छा से मुक्त जीवन जीने की दी प्रेरणा

*श्रीमती रंजनी दुगड़ “श्राविका गौरव अलंकरण” से सम्मानित

माधावरम् स्थित जैन तेरापंथ नगर के महाश्रमण समवसरण में ठाणं सुत्र के दूसरे अध्याय का विवेचन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि मूर्च्छा के दो प्रकार की होती हैं – प्रेयश प्रत्यया और द्वेष प्रत्यया|

मूर्च्छा एक मोह का आवरण है जो चेतना को आवर्त कर देती है| जैसे आकाश में चमकते हुए सूर्य को बादल आच्छादित कर देते हैं, ठीक वैसे ही चेतना की निर्मलता को मोह रुपी बादल आच्छादित कर देते हैं|

जैसे बादलों से आकाश आच्छादित होने पर उसकी तेजस्विता मंद हो जाती है, ठीक उसी प्रकार चेतना की तेजस्विता मंद हो जाती है| मूर्च्छा का आवरण चेतना को मूढ़ बना देता है| मूर्च्छा को ही मोह कहा जा सकता है| मोह, मूर्च्छा, कशमल ये पर्यायवाची शब्द है|

आचार्य श्री ने आगे कहा कि प्रेयस यानी राग और द्वेष के कारण मूर्च्छा पैदा होती है| दो शब्द हैं – प्रेय और श्रेय| एक चीज़ प्रिय हो सकती है, परन्तु श्रेय नहीं हो सकती हैं| एक चीज़ प्रिय हो सकती है, परन्तु कल्याणकारी नहीं हो सकती है|

एक चीज़ अप्रिय हो सकती है, परन्तु कल्याणकारी सिद्ध हो सकती है| मधुमेह से पीड़ित रोगी को मिठाई प्रिय हो सकती है, परन्तु श्रेयस्कर नहीं होती है और करेला खाने में अप्रिय हो सकता है, परन्तु स्वास्थ्य के लिए कल्याणकारी होता है, तो हमें प्रियता में नहीं उलझना चाहिए, श्रेयस्कर को अपनाना चाहिए, जो हमारे लिए कल्याणकारी सिद्ध हो सकता है|

आचार्य श्री ने आगे कहा कि मनोज्ञ पदार्थ के प्रति राग भावना नहीं रखना चाहिए,अमनोज्ञ पदार्थ के प्रति द्वेष भाव नहीं करना चाहिए| हम राग-द्वेष से ऊपर उठकर समता भाव में रहने का प्रयास करना चाहिए| मनोज्ञ पदार्थ हमें उपलब्ध होने पर खाने को सराह – सराह कर नहीं खाना चाहिए, अमनोज्ञ पदार्थ सामने आने पर निंदा नहीं करनी चाहिए|

समता भाव से, शांति से भोजन करना चाहिए| दुनिया में तीन रत्न में पानी और अच्छी वाणी (शास्त्रों की वाणी के साथ अन्न को भी रत्न कहा गया है|
आचार्य श्री ने भगवान महावीर के समय के गणधर गौतम के घटना प्रसंग को बताते हुए कहा कि *राग परम् की प्राप्ति में बाधक हैं| राग के आवरण रूपी बादल के फटने से ही गणधर गौतम को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ|

अत: जहां तक सम्भव हो सके मूच्छा से मुक्त रहने का प्रयास रखने की प्रेरणा दी|

*रजनी दुगड़ “श्राविका गौरव अलंकरण” से सम्मानित

अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल का गौरवशाली सम्मान ब्यावर निवासी चेन्नई प्रवासी तेरापंथ धर्म संघ की सुश्राविका, अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की कार्यकारिणी सदस्या श्रीमती रजनी दुगड धर्मपत्नी श्रीमान् पुखराज जी दुगड को सन् 2018 का “श्राविका गौरव अलंकरण” से किया सम्मानित किया गया|

इस अवसर पर आचार्य महाश्रमण ने कहा कि महिला समाज अपनी गरिमा को बनाये रखे और आगे बढती रहे| देव, गुरु, धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा, भक्ति, विवेक, ज्ञान,के साथ आगे बढती रहे| *त्याग, तपस्या, प्रत्याख्यान, बारह व्रत, सुमंगल साधना से भावित कर जीवन को श्रावकत्व के गौरव गौरवान्वित करना चाहिए|

आचार्य श्री ने कहा सम्मान मिलना एक प्रकार का उपहार हैं और अधिक दायित्व बोध के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देता है| आचार्य श्री ने आगे कहा कि श्राविका बनना और उसमें भी श्राविका गौरव मिलना और भी गौरव की बात है| शारीरिक कष्टों में भी समता की साधना से जीवन में सहनशीलता का विकास करे, आत्मकल्याण की दिशा में अग्रसर बने, यही मंगलकामना|

मातृहृदया साध्वी प्रमुखाश्री जी ने कहा कि दुगड़ परिवार लम्बे समय से धर्म की सेवा आराधना निरन्तर कर रहा है, पुरा परिवार संघ समर्पित है, रजनीजी दुगड भी अनेको वर्षों से संघीय संस्थाओं से जुड़ी हुई है|

देव, गुरु,धर्म पर आस्था रखे और आगे विकास करे। मुख्य मुनिश्री महावीर कुमार ने साधक को बाहर रहते हुए भीतर में रमण करने की प्रेरणा दी|

अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की राष्ट्रीय अध्यक्षा श्रीमती कुमुद कच्छारा ने अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए रजनी जी दुगड को बधाई दी| प्रशस्ति पत्र का वाचन महामंत्री श्रीमती नीलम सेठिया ने किया|

श्रीमती रजनी जी दुगड ने सभी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि अंतिम समय तक संघ की प्रभावना करती रहूँ, गुरुदेव आप करूणा के सागर हो ऐसा आर्शीवाद मुझे प्रदान करे|
श्रीमती संजु दुगड ने भावों एवं
दुगड़, लुणावत परिवार की बहनों ने गितीका के माध्यम से प्रस्तुति दी|

ये सम्पूर्ण चेन्नई के लिए गौरव की बात है क्योंकि श्रीमती रजनी जी दुगड चेन्नई का गौरव है और एक कर्मठ कार्यकर्ता जो लम्बे समय से धर्म संघ को अपनी सेवाएं प्रदान कर रही हैं|

*तप की बह रही गंगा

श्रीमती लाड़बाई मेड़तवाल ने 31, श्री मनोज पीपाड़ा ने 21, रूपाली भंसाली ने 11, विवेक भंसाली, मेघना श्यामसुखा, ॠषभ वाणगौत ने 8 दिन की तपस्या का प्रत्याख्यान आचार्य प्रवर के श्री मुख से किया|

इस अवसर पर चेन्नई चातुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री धरमचंद लुंकड, तेरापंथ महिला मंडल और सभी संघीय संस्थाओं और श्रावक समाज ने दी उज्ज्वल भविष्य की मंगलकामनाएं और बधाइयाँ सम्प्रेषीत की| कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार ने किया|

*✍ प्रचार प्रसार विभाग*
*आचार्य श्री महाश्रमण चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति, चेन्नई*

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