Share This Post

ज्ञान वाणी

परमात्मा से जोड़ती है भक्त की पवित्रता: आचार्य पुष्पदंतसागर

चेन्नई. कोंडीतोप स्थि सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंतसागर ने कहा भक्त की पवित्रता परमात्मा से जोड़ती है। सरलता परमात्मा के करीब ले जाती है एवं निष्कपटता परमात्मा बनाती है जो आत्मीयता से मिलती है। सत्य का रसपान कराती है।

भक्त जब भगवान की भक्ति में डूबता है तो परमात्मा से कहता है मैं एकमात्र तुम्हारा और तुम मेरे हो। मैं चाहे निंदा का पात्र बनूं या प्रशंसा का। हंसाना है या रुलाना, पास बुलाना है या दूर भगाना है, तृप्ति का नीर बरसाना है या अतृप्ति की आग लगानी है। फूल बनकर महकूं या शूल बनकर चुभूं यह सब तुम्हारी मर्जी पर है।

आत्मा की अनंत शांति को प्रकट करने तुम्हारी शरण में आया हूं। भगवान की शरण में भिखारी बनकर या पुजारी बनकर जाएं। सुदामा व मीरा की तरह बनकर जाएं तो हृदय का कमल खिल जाएगा। भगवान मेरी इस प्रार्थना को स्वीकार करें। मेरी शक्ति नहीं है कि मैं बड़ा बनूं। आपके गीत गाऊं और लोग मेरा नाम ले यह मुझे कुछ नहीं चाहिए।

आपकी छवि सामने आती है तो खिंचा चला आता हूं। मां को गूंगा बच्चा भी उतना ही प्यारा होता है जितना बुद्धि वाला। आपके दरबार में तो भेदभाव जरा भी नहीं है। मेरी भक्ति को स्वीकार कीजिए।

भक्त में इतनी विनम्रता, कोमलता व मधुरता होनी चाहिए। भक्ति के माध्यम से जीने की कला सीखो। दुनिया में रहो लेकिन दिल में दुनिया को नहीं रखो। अनासक्त भाव से रहो यही सच्ची भक्ति है। धर्मसभा में जयचंद, सरोजकुमार बाकलीवाल भी उपस्थित थे।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar