चेन्नई. तांबरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि परमात्मा वहीं है जो राग-द्वेष से परे हो। ऐसे परमात्मा की भक्ति सभी को करनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि राग द्वेष के विजेता अरिहंत देव के लिए न तो कोई अपना है और न ही पराया। वे अपने और पराए की परिधि को पार कर चुके हैं। उनके लिए न तो शत्रु है और न ही मित्र। वे उपकारी और अपकारी दोनों के प्रति समान दृष्टि रखते हैं।
उन्होंने भक्ति का अर्थ समझाते कहा कि अपने आराध्य के प्रति स्वयं को पूरी तरह से समर्पित कर देना ही भक्ति है। जहां अहं जल जाए, ममत्व विसर्जित हो जाए, वासना विदा हो जाए भक्ति के फूल वहीं पर खिलते हैं। साध्वी अपूर्वा ने कहा कि जिन वचन पर संदेह करना दोष है।