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परमात्मा की साधना में जरूरी है अहोभाव: आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर

परमात्मा की साधना में जरूरी है अहोभाव: आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर

चेन्नई. किलपॉक में रंगनाथन एवेन्यू स्थित एससी शाह भवन में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्वर ने गुरुवार को मंत्रोच्चार के साथ तीर्थंकर मुनिसुव्रत स्वामी की मूर्ति की प्रतिष्ठा कराई।

इस मौके पर उन्होंने कहा परमात्मा की साधना में अहोभाव होना जरूरी है। परमात्मा परमार्थ और परोपकार की पराकाष्ठा थे। पूरी प्रकृति उनकी पूजा करती है। संसार के जीवों के प्रति उनके हृदय में प्रेम, करुणा, मैत्री है इसलिए सारा जगत उनको पूजता है। तीर्थंकर मुनिसुव्रत स्वामी ने एक अश्व को प्रतिबोधित करने के लिए साठ योजन विहार किया।

प्रभु महावीर ने चण्डकौशिक को बोध दिया। वे चंदनबाला के आंसूओं की पुकार सुनकर आए। उन्होंने कहा आंसू कई प्रकार के होते हैं दुख के आंसू, हर्ष के आंसू, पश्चाताप के आंसू और भक्ति के आंसू।

तन और धन का आत्मसमर्पण करना आसान है, लेकिन मन को अर्पित करना कठिन। भव सागर से तरना व जन्म मरण से मुक्त होना है तो आत्मा को मोह से मुक्त कराना पड़ेगा।

परमात्मा के प्रति समर्पण होना यानी मोह मुक्ति। संघ के सचिव नरेन्द्र श्रीश्रीमाल ने बताया आचार्य की निश्रा में 8 फरवरी को नूतन मंदिर की प्रतिष्ठा होगी।

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