पुरुषवाक्कम स्थित एमकेएम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि ने कहा परमात्मा कारण देखते हैं और यह संसार परिणाम को देखता है। जब कारण बदल जाएगा तो परिणाम अपने आप बदल जाएंगे। जो मूल कारण को खोजे वही ज्ञान कहलाता है। जो पदार्थ के अन्दर का कारण जानने का प्रयास करता है वह भौतिक विज्ञान है लेकिन धर्म जीव और आत्मा दोनों के भीतर का कारण देखता है।
विश्व और जीवन का संचालन छह द्रव्यों के परस्पर संयोग और क्रियाओं से होता है। इनमें से एक तत्व जीव की प्रकृति के बारे में कहा जानना जीव का स्वभाव है। यदि जो जैसा है वैसा जाने तो ज्ञान है और जो नहीं है, उसे जान लेते हैं तो उसे अज्ञान या भ्रम कहते हैं। संसार का भ्रम भी ऐसा ही है। प्रत्यक्ष दृश्य में छिपे सत्य को देखना डिस्कवर या रिसर्च करना कहते हैं।
किसी अहंकार, क्रोध और विलाप करने वाले के भावों में से हम यदि उसमें छिपा हुआ उसका दर्द, अपमान की भावना और प्रेम की भूख देख पाएंगे तो हमारा नजरिया बदल जाएगा। हम बाहरी आवरण को ही देखते हैं जबकि उसके अन्दर के छिपे हुए भाव और उसका कारण देखना चाहिए।
परमात्मा कहते हैं कि जो भावों को जानता है वह ज्ञान है। हर व्यक्ति में सामथ्र्य है, लेकिन उसे देखना, पहचानने और प्रोत्साहन मिलने पर उसकी प्रतिभा सामने आती है। जिसे पत्थर में छिपी मूर्ति दिखाई देती है वही पत्थर को सुंदर मूर्ति बना सकता है, यही ज्ञान कहलाता है। इसलिए अपने स्वजनों में छिपी गुणवत्ता और प्रतिभा पहचानें और उसे उजागर करें।
उपाध्याय प्रवर ने ‘पर्यूषण पर्व को यूनिवर्सल कैसे बनाएं’’ विषय पर विशेष व्याख्यान दिया तथा कार्यक्रमों की रूपरेखा के बारे में विस्तृत चिंतन किया गया। उन्होंने कहा कि पर्युषण पर्व की स्थापना स्थापना अपने घर, प्रतिष्ठान आदि सभी जगहों पर करें। हमें पर्युषण को आम लोगों तक पहुंचाना चाहिए और इसे घरों से बाहर निकालकर इसे पूरे उल्लास से अपने प्रतिष्ठान, बाजार और गली-चौराहों पर भी मनाने की जरूरत है। तभी लोग पर्युषण के बारे में जान सकेंगे। पहले स्वयं इसके बारे में पूर्ण जानकारी प्राप्त करें और दूसरों को भी इसके बारे में बताएं, आम लोगों को इससे जोडऩे का पूरा-पूरा प्रयास करें। जैन धर्म को विश्व धर्म बनाने का प्रयास करें। इस मौके पर मासखमण की पच्चखावणी करवाई गई।