किलपॉक में चातुर्मासार्थ विराजित आचार्य तीर्थभद्र सूरीश्सवर ने कहा परमात्मा अचिंत्य शक्ति है। यह वह शक्ति है जिसके बारे में हम कल्पना भी नहीं कर सकते। परमात्मा सिद्धशिला में विराजित है लेकिन वे अपना कार्य हर क्षैत्र में कर रहे हैं चाहे कोई भी काल या आरा हो।
जिस तरह एक मां अपने बेटे की स्वच्छता व पवित्रता का ध्यान रखती है उसी प्रकार वे तीनों लोक के जीवों को स्वच्छ व पवित्र बनाने का कार्य कर रहे हैं। संसार में मनुष्य विषय और कषायों का सेवन कर अपनी आत्मा को मलिन बना रहा है। परमात्मा यह देख नहीं सकते कि कोई जीव आत्मा को मलिन बनाए।
इसलिए वे नाम, आकृति, रूप यहां छोड़कर गए हैं। परमात्मा के नाम में शक्ति है। उनके स्मरण व दर्शन मात्र से पापों का क्षय होता है, पर हमें उनके प्रति श्रद्धा होनी चाहिए। परमात्मा का कार्य परमार्थ करना, जीवों को तारना है। उन्होंने कहा निमित्त कारण के दो प्रकार है पुष्ट निमित्त और अपुष्ट निमित्त।
साधना हम करते हैं लेकिन मोक्ष के हेतु परमात्मा है इसलिए परमात्मा पुष्ट निमित्त कारण है। उपादान कारण निमित्त कारण के अधीन है। जब तक उपादान निमित्त के पास नहीं पहुंचेगा, निमित्त उसकी शक्ति को प्रकट नहीं होने देगा।
हमें परमात्मा का दर्शन, बहुमान, भक्ति करना है तभी प्रभु का प्रसाद मिलेगा क्योंकि प्रभु भव सागर से तारने वाले है। उन्होंने कहा जो प्रभु की शरण में बैठ गया उन्हें कोई चिंता नहीं है, यह पुष्ट निमित्त है। जब प्रभु के आत्मस्वरूप का दर्शन होता है, हमारा आत्मस्वरूप शुद्ध होता है।
उन्होंने कहा यदि भव्यत्यता का परिपाक हो गया तो वे आपका हाथ पक? लेंगे। जीवन की नैया मोह के तूफान में फंसी हुई है, आराधना में मोह का तूफान चल रहा है लेकिन प्रभु आपके साथ हैं तो कोई भय नहीं है, यह विश्वास, श्रद्धा होनी चाहिये। परमात्मा को पुष्ट कारण का आलम्बन बनाओ।