चेन्नई. रविवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज के प्रवचन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषिजी ने आचारांग सूत्र में त्रसकाय जीवों की श्रेणी के बारे में बताया। वे जीव त्रसकाय कहलाते हैं जिन्हें पीड़ा का अनुभव हो। जो बन भी सकता है और बिगड़ भी सकता है। दो इन्द्रिय जीवों से पंचेन्द्रियों तक के जीवों में सुधरने और बिगडऩे दोनों की स्थितियां हो सकती है।
जो त्रसकाय जीव अपनी पांचों इन्द्रियों का सदुपयोग करता है वह शिखर को छू सकता है, मोक्ष को आसानी से प्राप्त कर सकता है, एकलव्य के समान बन सकता है। पंचेन्द्रिय जीव स्वयं में सुधार भी ला सकता है और बिगड़ भी सकता है। जिस प्रकार दुर्योधन को सुधारने के लिए अनेक वाक्य लगे लेकिन वह द्रोपदी के मात्र एक वाक्य से बिगड़ा और परिणाम महाभारत हो गया।
त्रसकाय जीवों की उत्पत्ती अंडों से, आवरण रहित, जरायुज, रसैया, समरछिन्न और संवेदय आदि के द्वारा होती है। ये सभी पंचेन्द्रिय जीव हैं। त्रसकाय जीव में क्षमता होती है कि वह स्वयं के साथ ही दूसरों को सकारात्मक या नकारात्मक दोनों ही तरह प्रभावित कर सकता है।
ये जीव दु:खों से पीड़ा का अनुभव कर दूर भागते हैं और सुखों में सुख पाकर उनके पीछे दौड़ते रहते हैं। जिस प्रकार परमात्मा तीर्थंकर के समवशरण में देवता, मनुष्य, पशु-पक्षी सभी दौडक़र आते हैं। त्रसकाय की बुद्धि सुख-दु:ख से संचालित होती है और जब प्रज्ञा और ज्ञान होता है तो समझ में आता है कि यह सुख-दु:ख तात्कालीक है या दीर्घकालीन है। जब धर्मसौम्या और अध्यात्म का बोध होता है तो ही व्यक्ति शरीर से परे सोचता है, इसलिए लोगों के दु:ख दूर करें तो वे स्वयं चले आएंगे।
परमात्मा ने कहा है कि प्रत्येक जीव को किसमें सुख मिलता है, इसका तू ध्यान कर। उन्हें अभय, शांति और सुख का अनुभव जिससे होता है, उसी को जानें और करें। सभी का सुख-दु:ख का मापदण्ड अलग-अलग है इसको लक्ष्य कर उन्हें अभय बना। जिस प्रकार एक मां अपने बच्चे के सुख-दु:ख को जानती है। उस मां की पूरी चेतना और ध्यान उस बच्चे के रोम-रोम को समझता है इसलिए वह जानती है। परमात्मा ने जिसको जैसी आवश्यकता थी उसे वैसा ही उपदेश दिए।
श्रेणिक चारित्र में बताया कि रानी चेलना और राजा श्रेणिक एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हुए हैं और अपने-अपने धर्म गुरु को श्रेष्ठ और दूसरे को नीचा दिखाने के प्रयास करते हैं। रानी चेलना घर आए हुए धर्मगुरुओं को इशारे से कुछ पूछती है और वे भी संकेत करने के बाद बिना भिक्षा ही लौट जाते हैं। ऐसा कई बार होने पर श्रेणिक उत्सुक हो चेलना से पूछता है, वह कहती है कि इसका उत्तर वे गुरु ही दे सकते हैं।
तीर्थेशऋषि महाराज ने कहा कि मोक्ष उसी को मिलता है जो अपने कर्मों का क्षय करता है। अपने कर्मों का क्षय वही जीव करता है जिसे अपने कर्मों के बंध का ज्ञान हो। यदि पहने हुए वस्त्र आपको मैले लगेंगे तो ही उन्हें धोने और स्वच्छ करने की भावना आएगी। पर्युषण पर्व के इस पावन अवसर पर आप इनसे भली-भांति हो गए हैं। मोक्ष के रास्ते बहुत साधारण है।
इनमें धर्मध्यान, शुक्लध्यान और तप की आग में मोम के पुतले के समान आपके कर्म पिघल जाएंगे। जो यह जानता है वही कर्मों को काट सकता है, निर्जरा कर सकता है। कैसे हम अपने कर्मों की निर्जरा कर सकते हैं और अपने कर्मों से न डरते हुए सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो सकते हैं। हमें यह कला आनी चाहिए। उन्होंने बताया कि कर्मा शिविर में यह कला सिखाई जाती है, इससे जुड़ें और अपने कर्मों की निर्जरा करना सीखें।
17 तपस्वीयों की पच्चखावणी हुई और उपस्थित विशाल जनसमूह ने लगभग 20 तपस्वीयों की तपस्या की अनुमोदना की तथा चातुर्मास समिति द्वारा तपस्यार्थियों का बहुमान किया गया। एएमकेएम ट्रस्ट के धर्मीचंद सिंघवी ने बताया कि एएमकेएम धर्म पीढ़ी संस्था के अंतर्गत कहीं भी स्थानक बनाने के लिए 75 प्रतिशत सहयोग दिया जाएगा और स्थानीय संघ का 25 प्रतिशत सहयोग रहेगा। युवाओं के लिए जैनोलोजी प्रैक्टिकल क्लास सोमवार से शुरू होगा।