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ज्ञान वाणी

न करें गुस्सा, सहन करने होती है कर्म निर्जरा: शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

न करें गुस्सा, सहन करने होती है कर्म निर्जरा: शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

-अहिंसा यात्रा संग आचार्यश्री पहुंचे राजीव गांधी काॅलेज आॅफ इंजिनियरिंग एण्ड टेक्नोलाॅजी

-किरुममपक्कम में आचार्यश्री का हुआ पावन पदार्पण

-आचार्यश्री ने लोगों को गुस्से को कम करने दी पावन प्रेरणा

किरुममपक्कम (पुदुचेरी): भारत के अन्य केन्द्रशासित प्रदेश पुदुचेरी में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी अहिंसा यात्रा के गतिमान हैं। आचार्यश्री के मंगल संदेश यहां की वातावरण में गुंजायमान हो रहे हैं और जन मानस इससे लाभान्वित हो रहा है। आचार्यश्री के शुभागमन से पूरा पुदुचेरी उल्लसित नजर आ रहा है। आचार्यश्री की अमृतवाणी सुनने के लिए लालायित लोग उनकी मंगल सन्निधि में पहुंच जाते हैं। आचार्यश्री की अमृतवाणी पूर्ण लाभ भारत के इस केन्द्रशासित प्रदेश को प्राप्त हो रहा है।

पुदुचेरिवासियों को मानवता का संदेश देने के लिए रविवार को प्रातः आचार्यश्री ने मदर टेरेसा माॅडल हायर सेकेण्ड्री स्कूल से मंगल प्रस्थान किया। आचार्यश्री का विहार मार्ग बंगाल की खाड़ी के बिल्कुल सन्निकट हो रहा है, इसलिए प्रातः चलने वाली हवा लोगों को हल्की ठंड का अहसास करा रही थी। दूसरी ओर सूर्य भी आसमान में गतिमान हो चुका था और उसकी किरणों का आतप कुछ ही समय में ठंड के अहसास को समाप्त कर स्वयं स्थापित हो गया। इसके बावजूद आचार्यप्रवर का समताभाव वैसे ही बना हुआ था जैसे प्रातः विहार के दौरान बना था। आचार्यश्री लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर किरुममपक्कम में स्थित राजीव गांधी काॅलेज आॅफ इंजिनियरिंग एण्ड टेक्नोलाॅजी के प्रांगण में पधारे। आचार्यश्री का मंगल चरणरज पाकर मानों यह काॅलेज परिसर में भी धन्य हो गया।

प्रवास स्थल के समक्ष ही बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि ज्यादा गुस्सा करने वाली आदमी अथवा साधु भी अप्रिय बन सकता है। गुस्सा आदमी की कमजोरी होती है। गुस्सा मनुष्य जीवन का बहुत बड़ा शत्रु होता है। गुस्से से मनुष्य को दुःख भी उठाने पड़ सकते हैं और हानि भी हो सकती है। आदमी अथवा साधु को अपने गुस्से को कम करने का प्रयास करना चाहिए और धीरे-धीरे उसे समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए। साधु के लिए तो गुस्सा अच्छा होता नहीं है, साधु पर गुस्सा अच्छा ही नहीं लगता क्योंकि साधु तो महान प्रासाद समता भाव होने चाहिए। गुस्सा जीवन में कड़वाहट ला सकता है। इसलिए आदमी को अपने गुस्से को कम करने अथवा क्षीण करने का प्रयास करना चाहिए। गुस्सा करने से आदमी कर्म बंध भी होते हैं और गुस्सा नहीं करने से शांत रहने और सहन करने से कर्म निर्जरा होती है, इसलिए आदमी को अपने गुस्से को कम करने और सहन करने का प्रयास करना चाहिए। कभी गुस्सा आए तो दीर्घ श्वास का प्रयोग करना चाहिए। आदमी को गुस्से को कम और सहन कर कर्म निर्जरा का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री ने विशेष प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि धर्म करने से निर्जरा के साथ-साथ पुण्य का बंध भी होता है तो जीवन में उसका विशेष प्राप्त हो सकता है। जैसे राज्य का मिलना, अच्छा पुत्र प्राप्त होना, सुन्दर शरीर का प्राप्त होना, निरोगी शरीर का प्राप्त होना सुन्दर आवाज का प्राप्त होना, चतुराई आदि का प्राप्त होना धर्म के प्रताप से होता है। इसलिए आदमी को अपने गुस्से को शांत करने और अपने जीवन को शांतिमय बनाने का प्रयास करना चाहिए।

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