चेन्नई. माधवरम में जैन तेरापंथ नगर स्थित महाश्रमण सभागार में विराजित आचार्य महाश्रमण ने गुरुवार को कहा कि पाप एक है। नौ तत्वों में चौथा तत्व पाप है। नरक से निकलकर भी जीव तीर्थंकर बन सकता है।
आदमी अपने जीवन में धर्म करता है तो पाप भी कर लेता है। राजा श्रेणिक द्वारा पंचेंद्रिय प्राणियों की हत्या का वृत्तांत सुनाते हुए आचार्य ने कहा, अशुभ कार्यों से मिलने वाला पाप का फल भी पाप ही होता है। पाप की प्रवृत्तियां पाप का अर्जन कराने वाली होती हैं। आचार्य ने कहा कि द्रव्य हिंसा और भाव हिंसा का महत्व है। राग द्वेष के बिना हिंसा नहीं होती।
आत्मा ही हिंसा और अहिंसा का कारण बनती है। द्रव्य के साथ की गई हिंसा नहीं, हिंसा का भाव हो तो भी हिंसा पाप का फल देने वाली होती है। आदमी को झूठ बोलने के पाप से भी बचना चाहिए। साथ ही उसे आत्मा को चोरी के पाप से भी बचाना चाहिए।