गुरु पूर्णिमा पर साध्वी सुमित्रा म.सा. का उद्बोधन
चेन्नई. कोडमबाक्कम-वड़पलनी जैन भवन में चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी सुमित्रा ने मंगलवार को गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुरु की महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज पूर्णिमा का दिवस है मतलब चातुर्मास शुरू हो गया।
उन्होंने कहा वैसे तो वर्ष भर में बारह पूर्णिमा आती है लेकिन गुरु पूर्णिमा पावन संदेश लेकर आती है। इसके आने पर दुनिया भर में विचरण करने वाले साधु संत चातुर्मास के लिए विराजमान हो जाते हैं।
उन्होंने कहा चातुर्मास अपने गुरु के उपकारों को जानने का सुंदर अवसर है। जो लोग गुरु के उपकारों को भूल जाते हैं उनको जीवन में पछताना पड़ता है। गुरु की महिमा बताते हुए उन्होंने कहा गुरु भगवंत मनुष्य को कहां से कहां पहुंचा देते हैं। इस लिए हमें अपने गुरु के दिखाए मार्ग पर चल कर उनके उपकारों को चुकाने का प्रयास करना चाहिए।
उन्होंने गुरु-शिष्य के रिश्ते की विवेचना करते हुए कहा कि दुनिया का हर रिश्ता स्वार्थ जुड़ा है लेकिन गुरु-शिष्य के रिश्तेे में किसी प्रकार का स्वार्थ नहीं होता। निस्वार्थ भाव से गुरु अपने शिष्य को अच्छे मार्ग पर चलने सलाह देते हैं। ऐसे में उनके उपकारों को भूलना जीवन को गलत मार्ग पर पहुंचाने जैसा है।
उन्होंने कहा कि आषाढ पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक जो चार महीने होते हैं उसे चातुर्मास कहते हैं। जैसे ही आषाढ का महीना आता है बारिश होती है और चारों तरफ हरियाली हो जाती है। हरियाली में जीव जन्तु अधिक पैदा होते हैं। उनकी रक्षा के लिए साधु एक स्थान पर रुकते हैं।
इससे ज्ञान, ध्यान, स्वाध्यान करने का मौका मिलता है, क्योंकि आठ महीने विचरण के दौरान साधु संत इतना ज्ञान ध्यान नहीं कर पाते हैं। यह अवसर श्रावक श्राविकाओं के साथ साधु संतो को भी मिलता है। चार महीने की जिनवाणी से अपनी आत्मा को पवित्र करना है।
इस मौके का लाभ लेते हुए जीवन रूपी खेत में धर्म रूपी बारिश से दान, शील, तप और भावना का बीज बो लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस क्षेत्र में नदी होती है वहां का वातावरण हरा-भरा होता है। उसी प्रकार जिस क्षेत्र में प्रवचन होता है वहां का वातावरण भी सुखमय होता है।