वेलूर. वेलूर स्थित शांति भवन में विराजित ज्ञानमुनि ने कहा मन ही मंदिर है, मन ही पूजा एवं परमात्मा है। मन साफ व निर्मल है तो खुद परमात्मा वास करते हैं। धर्म के चार अंग दान, शील, तप एवं भावना हैं। मनुष्यों को अच्छी भावना रखना चाहिए। कभी कभी जगह अच्छी नहीं रहने पर भाव बिगड़ जाता है।
भावना में कभी घटाव न करें। अच्छी जगह जैसे धर्मस्थल व मंदिरों में भावना सही रहती है। पदार्थ का भी भाव पर असर डालती है। मानवों को परमात्मा व महापुरुषों ने हमेशा सही राह दिखाई है। अगर आंखें दी हैं गुरु व परमात्मा के दर्शन करने के लिए। हाथ दिए हैं दान देने व गरीबों की सहायता व भलाई करने के लिए दिए हैं।
पैर दिए हैं शुभ कार्य करने, अच्छी जगह एवं तीर्थ स्थलों में जाने के लिए। जीभ दी है तो प्रभु एवं महापुरुषों के गुण गाने व कान दिए हैं ज्ञान की बातें, गुुरुओं व महापुरुषों की वाणी एवं परमात्मा के भजन सुनने के लिए तथा नाक मनुष्य की इज्जत का प्रतीक है।