चेन्नई. साहुकारपेट के जैन भवन में चातुर्मासार्थ विराजित साध्वी सिद्धिसुधा ने शनिवार को कहा कि समझदार श्रावक स्वाध्याय कर अपनी चेतना को शुद्ध कर लेते है। यह पापमय संसार है यहां रह कर कर्म के बंधन को कम करने की कोशिश करनी चाहिए। गलत मार्गो पर जाकर मनुष्य खुद ही दुखी होता है।
आत्मा बहुत ऊंची है लेकिन मनुष्य की इंन्द्रियों ने इसे ढक दिया है। साध्वी सुविधि ने कहा कि पिंजरा भले ही बंद रहता है लेकिन वह बंधन नहीं है बल्कि उसे सुरक्षा कहते है। वर्तमान में बच्चों को अगर माता पिता कुछ बोलते है और नियम बनाते हैं तो उन्हें लगता है कि उन्हें बंधन में बांधा जा रहा है।
लेकिन सच तो यह है कि वह बंधन नहीं बल्कि सुरक्षा कवच होता है। मनुष्य अपनी अज्ञानता की वजह से पिंजरे को जेल समझता है लेकिन यह सही मायने में मनुष्य को सही राह पर ले जाने वाला सुरक्षा होता है।
उन्होंने कहा कि हवा कितनी भी तेज क्यों ना हो पर बिना डोर के पतंग कभी नहीं उड़ती। लेकिन डोर होने पर काफी ऊंचाईयों तक पहुंच सकती है। उसी प्रकार से माता पिता का बंधन भी बच्चों को ऊंचाईयों पर पहुंचाने वाले होते हैं। वर्तमान में लोग इस तरह के बंधन को पसंद नहीं करते है। उसी प्रकार से मनुष्य को भी जीवन में आगे जाने के लिए नियम के अनुरूप ही चलने की जरूरत है।
जो नियम के खिलाफ जाते है वे कहीं के नहीं रह पाते है। उन्होंने कहा कि नियम बना कर मर्यादा के अंदर रहने वालों का जीवन ही उत्तम जीवन होता है। साध्वी समिती ने भी धर्मसभा मे विचार रखे ।
इस मौके पर संघ के अंध्यक्ष आनंदमल छल्लाणी उपाध्यक्ष नरेन्द्र कोठारी उपस्थित थे। रविवार को वर्षाप्राप्ति एवं जल संकट निवारण हेतु विश्व शांति जाप अनुष्ठान का आयोजन किया जाएगा।