साहुकारपेट के श्री राजेन्द्र भवन में मुनि संयमरत्न विजय व भुवनरत्न विजय ने कहा कि नवकार संप्रदायों में नहीं, स्वयं के बाहर नहीं, नवकार तो स्वयं के शुभ व शुद्ध भावों में, स्वयं की श्वास-श्वास में है। नवकार तो सूर्य की भांति स्पष्ट है, सिर्फ आंखें खोलने की देरी है। वह जड़ता नहीं, जीवन है। जो सोता है, वह खोता है।
नवकार में आया हुआ ‘त’ कहता है कि नवकार में नौ तत्वों के अतिरिक्त देव, गुरु और धर्म ये तीन तत्व भी हैं। इन तीनों तत्वों में गुरु तत्व मध्य में है जो हमें देव अर्थात् परमात्मा की पहचान कराने के साथ-साथ धर्म का मार्ग भी बताते हैं। सात वारों में भी गुरुवार मध्य में आता है और जिसकी जन्म-कुंडली में गुरु शक्तिशाली हो, उसके अन्य ग्रह कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते।
जो चलता है, वह पहुंचता है जो जागता है वह पाता है। नवकार के भीतर भावात्मक रूप से प्रवेश करना चाहिए जो भावात्मक रूप से नवकार नहीं जपता उसका कर्म भी नहीं खपता। अरिहंत के ध्यान से मान, सिद्ध के ध्यान से क्रोध ,आचार्य के ध्यान से माया, उपाध्याय के ध्यान से लोभ व साधु के ध्यान से विकार समाप्त हो जाते हैं।
मुनि ने प्रवचन के दौरान ‘पढमं हवइ मंगलं’ पद के वर्णानुसार परोली, ढंकगिरि, मंडार, हस्तिनापुर, वड़ाली, इडर, मंदसौर, गंधार व लक्ष्मणी तीर्थ की भाव यात्रा करवायी। सायला के डूंगरमल जुगराज भंडारी आम राजा के रूप में संघपति बने।
250 आराधकों की आयंबिल कराने में भीनमाल के संघवी पवनदेवी धनराज तांतेड़ परिवार का सहयोग रहा। मुनिद्वय के निर्देशानुसार रविवार को विभिन्न यौगिक मुद्राओं के साथ शास्त्रीय रागों में नवकार भाष्य जाप का अनुष्ठान कोच्चि से आए परेश शाह करवाएंगे।