मंगलवार को श्री एमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषावाक्कम, चेन्नई में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि महाराज एवं तीर्थेशऋषि महाराज द्वारा पर्युषण पर्व के अवसर पर ‘‘व्यवसाय की सफलता’’ विषय पर विशेष व्याख्यान आयोजित हुआ। उपाध्याय प्रवर ने बताया कि परमात्मा ने जैन धर्म में सर्वज्ञ बनना अनिवार्य किया गया है। ऐसी बातें जिन्हें पुण्य-पाप की कसौटी पर नहीं कसा जा सके उनका समाधान भी तीर्थंकर प्रभु ने दिया है।
परमात्मा महावीर ने कहा है कि बिजनेस की सफलता से पहले बिजनेसमेन का व्यक्तित्व, चरित्र और प्रतिभा का विकास होना जरूरी है। सफलता का पहला सूत्र है- परस्परोग्रह जीवानां। जब तक परस्पर सहयोग नहीं करते सफल होने की संभावना नहीं है। पुराने समय में अन्यत्र व्यापार हेतु जाने के लिए दूसरों को भी अपने सहयोग देते हुए साथ ले जाकर व्यापार बढ़ाने में मदद की जाती थी, आपस में सहयोग रहता था।
जब अपने से जुड़े लोगों को सहयोग और सहायता नहीं करोगे और प्रतिस्पर्धा करते रहोगे तो सफल नहीं हो पाओगे।
जो दूसरों को सुरक्षा का आश्वासन देता है वह स्वयं सुरक्षित हो जाता है। प्रतिस्पर्धा से अकेले रह जाओगे, दुश्मनी, टेंशन और नकारात्मकता की भावना ही आएगी और नकारत्मक व्यक्तित्व के साथ कोई भी कार्य कारोगे तो सफल होने की संभावना कम हो जाएगी। जीवन में यह सूत्र साकार होगा तो उन्नति के रास्ते मिलेंगे। इसलिए अपने समाज में छिपी प्रतिभाओं का मूल्यांकन करें और अधिक से अधिक सहयोग करना चाहिए।
उन्होंने धन्नाशालीभद्र के उदाहरण से बताया कि जिसके पास स्पेशल को देखने की नजर होती है, वही सफल होते हैं। नजर ऐसी हो जहां दूसरों को संभानाएं न दिखें आपको संभावना नजर आ जाए। जो बुद्धिमान इस कन्सेप्ट को जानते हैं उन्हें सफल होने से कोई नहीं रोक सकता।
तीर्थंकर प्रभु ने नमस्कार महामंत्र में व्यापार की सफलता का राज बताया
नमो अरिहंताणं- जो जीरो से शुरुआत कर उत्कर्ष पर पहुंचे हैं उन्हें नमन करें, उनसे सीख लें। अपने बल पर जिन्होंने दुनिया निर्माण की उनका अनुसरण करें। सफल लोगों के पास जाने और रहने से बहुत-कुछ सीख जाओगे।
अरिहंत का अर्थ है- जो अपने किसी भी रहस्य को छुपाते नहीं है। ऐसे व्यक्ति को खोजना चाहिए। नमो सिद्धाणं – जो बिजनेस करके रिटायर हो गया है, उसे सारी परिस्थितियों का ज्ञान है। उनके पास जाकर बैठोगे तो व्यापार में कहां खतरे हैं और कहां नहीं है इसकी पूरी जानकारी मिलेगी।
नमो आयरियाणं – जो मूल सुरक्षित रखते हुए नए रास्ते बताएं वे आचार्य हैं। जो थ्योरी को नए-नए रूप में प्रेक्टिकल करते हैं। जो द्रव्य काल, भाव, परिस्थिति के अनुसार समाधान देते हैं।
ऐसे अनुभवी को खोजें। नमो उव्वझायाणं- जो प्रेक्टिकल न करते हुए केवल साइंस, विज्ञान और कंसल्टिंग करता है और थ्योरी पर रिसर्च करता है वो उपाध्याय है। ऐसे लोगों के पास जाकर उनसे शिक्षा ग्रहण करें।
नमो लोए सव्व सासहूणं – जो आपसे मदद ले भी सकते हैं और दे भी सकते हैं। साधु का मूल चरित्र है- सहयोग देता भी है और ले भी सकता है। जो दोनों पक्षों को स्वीकारे उसी से जुड़ें। इस प्रकार ये पांच नमस्कार आपके बिजनेस के सभी पापों और बाधाओं का नाश कर देंगे। इन्हें अपने जीवन में अपनाएं और सफल हो सकते हैं।
तीर्थेशऋषि महाराज ने अंतगड़ श्रुतदेव का संगीतमय श्रवण कराया। धर्मसभा में एक 8 साल की बच्ची कुमारी निश्चल महावीरचंद बोहरा द्वारा भी ५ उपवास के सहित उपस्थिति अनेकों जनों ने विभिन्न तपसयाओं के पच्चखान लिए।
12 सितम्बर, बुधवार को स्वाध्याय संघ की शुरुआत करने वाले प्रवर्तक श्री पन्नालालजी महाराज की जन्म-जयंती का कार्यक्रम रहेगा। 15 सितम्बर को नवपद एकासन का कार्यक्रम होगा। 8-10 अक्टूबर को 72 घंटे का कर्म विज्ञान का शिविर होगा। कर्म का विज्ञान और सूत्र भगवान महावीर द्वारा बताए गए हैं और आज इसे बाजार की वस्तु बनाकर विदेशी लोग बेच रहे हैं। जैन धर्म में इसे परमात्मा प्रभु ने बताया है।
गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया :
आचार्य शुभचंद्रजी महाराज की श्रद्धांजलि और गुणानुवाद सभा का आयोजन किया गया। शुभचंद्रजी महाराज का अन्य सम्प्रदायों के लोग भी उनका बहुत आदर-सम्मान करते थे। जैसा उनका नाम था वैसा ही उनका प्रभाव था।
उन्होंने अपने जीवन यात्रा को निर्मलता के साथ पूर्ण किया किसी को उंगली उठाने का मौका नहीं मिला। सही तरीके से जीवन यात्रा को संपन्न किया। उन्होंने ऊंचाई से ही जीवन जीया और संलेखना पूर्वक जीवन की ऊंचाई को छुआ। महापुरुष का जाना समाज के लिए अपूर्णिय क्षति है लेकिन उनकी शिक्षाएं समाज को अनन्त काल तक मार्ग प्रशस्त करती रहेगी। उनकी आत्मा मोक्ष का वरण करते ऐसी सभी की भावना है।