चेन्नई. कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंतसागर ने कहा सज्जन वही है जो साधु प्रेमी है, शांत है, धर्म एवं चारित्र प्रेमी है। दुर्जन वही है जो साधु निंदक व धर्म विरोधी है, आचरणहीन व दूसरों से ईष्र्या-द्वेष रखता है। संसार प्रेमी व विषयभोगी है। मिट्टी शरीर से बेहतर है, वह अन्न, जल व शरण देती है।
शरीर का सदुपयोग करने वाले को बुरे विचार नहीं आते, परिवार का हित सोचने व करने वाले के मन में विचार गलत कभी नहीं आते। आत्मशक्ति सबसे बड़ा पावर है जो सबको शक्तिमान बनाता है। शक्ति के सारे पुर्जे आत्मशक्ति से ही चल रहे हैं। शरीर का गलत उपयोग करके आदमी पत्थर जैसा बन जा सकता है एवं सदुपयोग कर सबको प्रकाशित कर सकता है।
प्रतिदिन टीवी पर विकथाएं तो देखने को मिलती हैं लेकिन सत्पुरुषों की कथाएं बहुत मुश्किल से देखने को मिलती हैं। महापुरुषों की कथा से मन कभी नहीं भरता बल्कि पुण्य की वृद्धि होती है। नम्रता से सरलता का जन्म होता है। सूर्यमुखी का फूल सूर्य की किरणें पाकर खिलता है और उसके अस्त होते ही मुर्झा जाता है।
सज्जन संत को देखकर मुस्कराते हैं। सारी सृष्टि सूर्य के उगते ही प्रकाशमान हो जाती है एवं शक्ति, ताजगी महसूस करने लगते हैं। भगवान की कथा में भी ऐसी ही शक्ति है जीवन को जाग्रत कर देती है। परदर्शन से बचकर परमार्थ दर्शन की प्रेरणा देता है।