चेन्नई. कोडमबाक्कम-वडपलनी जैन भवन में विराजित साध्वी सुमित्रा ने कहा सांसारिक कार्यों में फंस कर अगर मनुष्य धर्म से पीछे हुआ तो अंत मे उसे पछताना होगा। निष्ठावान बन कर जो धर्म पर विश्वास रखते हैं वे धर्म कार्यों से कभी पीछे नहीं होते।
श्रद्धा पर विश्वास होना बहुत ही मुश्किल होता है लेकिन जिसमें यह श्रद्धा आ जाती है उसका जीवन बदल जाता है। जिससे मनुष्य को जीवन का बोध मिलता है वे गुरु होते हंै। भाव पूर्वक धर्म के प्रति श्रद्धा दिखाने से जीवन ऊंचाइयों को छूता है। इधर उधर की बातों को सुनकर जीवन मे आगे जाना धर्म नहीं होता।
धर्म तो गुरुवाणी सुनने में मिलता है। जिस प्रकार से जल का स्वभाव शीतल होता है और आत्मा का स्वभाव शांत होता है। उसी प्रकार से लोभ, माया मोह करना मन का स्वभाव होता है। लेकिन धर्म लोभ, मोह, माया क्रोध को दूर करती है।
जब किसान खेत मे बीज बोता है तो उसे पता होता है कि कब तक फल होगा। बार बार जाकर उसे निकालता नहीं है, बल्कि विश्वास रखता है। मनुष्य को संसार पर विश्वास है तो उसे धर्म के प्रति भी विश्वास रखना चाहिए।
सच्चे मन से धर्म करते रहना चाहिए। पाप के उदय होने पर मनुष्य करोड़ पति से रोडपति बन सकता है। स्वार्थ खत्म होने के बाद रिश्ते नाते खत्म हो जाते है। धर्म इस भव में भी साथ होता है और आने वाले भाव मे भी साथ होता है।