श्री ए.एम.के.एम. जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषवाकम में विराजित
चेन्नई. श्री ए.एम.के.एम. जैन मेमोरियल सेंटर, पुरुषवाकम के प्रागंण में चातुर्मासार्थ विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषिजी और तीर्थेशऋषिजी का प्रवचन आयोजित किया गया। प्रवचन के दौरान उन्होंने आचारांग सूत्र और राजा श्रेणिक का चारित्र श्रवण कराते हुए कहा कि जैनोलॉजी का पहला मंत्र है जो कर सकते हैं उसे करने से बचें नहीं बल्कि करने का प्रयास करें ।
समस्या छोटी हो या बड़ी उसका वर्तमान में ही करना चाहिए। छोटी समझ कर कल पर टाली गई समस्या समय बीतने के साथ एक दिन विकराल रूप धारण कर लेती है। ऐसे में समस्या से निजात पाना आसान नहीं रह जाता। प्रभु महावीर ने कहा है कि जो संभव है उसे कल पर नहीं टालना चाहिए और जो संभव नहीं है उसे भी पूरा करने की भावना रखते हुए सदा प्रयत्नशील रहना चाहिए।
राजा श्रेणिक की तरह परमात्मा की शरण में जाने वाला कोई भी व्यक्ति स्वयं का स्वामीबन जाता है। चुनौतियां स्वीकारने से आंतरिक शक्ति जागृत हो जाती है इसलिए इससे भागने की बजाय इसे सहर्ष स्वीकार करना चाहिए।
आचारांग सूत्र में मूल स्रोत पर विचार किया गया है। समस्याओं के मूल का पता लगा लेने पर उसे सुलझाने में देर नहीं लगती है। विकारों पर विजय प्राप्त करने के लिए सबसे पहले उनका स्रोत पहचानना होगा। किसी भी कार्य में यदि बोध और संवेदना नहीं है तो वह व्यर्थ है। किसी भी कार्य को करते समय दुनिया के कहने की चिंता छोडक़र उसे परमात्मा को ध्यान में रखकर करना चाहिए।
जगत में हर वस्तु की अपनी विशेषता है इसलिए उसमें कमियां तलाशने के बजाय उसके गुण पर ध्यान देना चाहिए। यदि अपने परिजनों की कमियों पर ध्यान देने के बजाए उनकी विशेषताओं पर ध्यान देकर और सार्वजनिक कल्याण के बारे में सोचे तो आम आदमी भी तीर्थंकर बन सकता है।