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धर्म की रक्षा होगी तो देश का कायाकल्प होना निश्चित है : साध्वीश्री डाॅ.कुमुदलताजी

धर्म की रक्षा होगी तो देश का कायाकल्प होना निश्चित है : साध्वीश्री डाॅ.कुमुदलताजी

आगामी एक पखवाडे़ तक विभिन्न दिवसों के रुप में जप-तप व धर्म-कर्म के साथ प्रतियोगिताओं के होंगे आयोजन

बेंगलूरु। स्थानीय वीवीपुरम स्थित महावीर धर्मशाला में जिनवाणी की प्रभावना करते हुए विश्वविख्यात अनुष्ठान आराधिका, शासन सिंहनी साध्वीश्री डाॅ.कुमुदलताजी ने सोमवार को अपने प्रवचन में कहा कि परमात्मा द्वारा दिए गए सुंदर जीवन को प्रकाशमय बनाने के लिए हमें उसके बताए मार्ग पर चलना होगा।
उन्होंने कहा कि परमात्मा से साक्षात्कार के लिए स्वर्ण के समान पांच अणुव्रत तथा चांदी के समान दिशाव्रतों को ग्रहण करना जरुरी है। साध्वीश्री ने कहा कि व्यक्ति की यदि दिशा सही हो तो उसे दशा भी सही मिलती है। गुरु दिवाकर केवल कमला वर्षावास समिति के तत्वावधान में अपने दैनिक प्रवचन मेें साध्वीश्री ने कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने हमें सीखाया है कि जीवन में हमें किस प्रकार विवेक से कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस देश में धर्म की रक्षार्थ कार्य होेंगे उस राष्ट्र का कायाकल्प होना निश्चित है।
शासनसिंहनीश्रीजी ने सोमवार को देश के लिए ऐतिहासिक दिवस बताया व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह के नाम का जिक्र करते हुए कहा कि बतौर शासक एक राष्ट्र के हित के लिए किए जाने वाले प्रत्येक कार्य की अनुमोदना की जानी चाहिए, क्योंकि ऐसे कार्य भविष्य के लिए सुखद संदेश है। इससे पूर्व स्वर साम्राज्ञी साध्वीश्री महाप्रज्ञाजी ने एक श्रद्धालु के लिए संतों के सान्निध्य को परमात्मा की कृपा एवं सौभाग्यभरा बताते हुए कहा कि संतों की निश्रा से आत्मा पवित्र होती है तथा जीवन में कोई कठिनाई नहीं आती है।
समताभाव से साधना को अपनाने की सीख देते हुए महाप्रज्ञाजी ने कहा कि इस सांसारिक दुनिया में व्यक्ति बंद मुट्ठी आता है तथा खाली हाथ जाता है। एक गीतिका के माध्यम से साध्वीश्री ने भगवान महावीर के कल्पसूत्र की व्याख्या की तथा सात दिनों के वार को जीवन से जोड़ते हुए कहा कि छोटे से जीवन में व्यक्ति को किसी की निंदा व बुराई नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि स्वर्ग, नरक तथा देव यहीं है, इसलिए परमात्मा की भक्ति करके प्रत्येक जीव के प्रति दया व प्रेम का भाव रखना चाहिए। महाप्रज्ञाजी ने जीवन की नश्वरता को समझने की प्रेरणा देते हुए यह भी कहा कि यह जीवन नश्वर-नाशवान है, जो इस जीवन को जान लेता है वही राम, महावीर बनता है और हंस से परमहंस बन जाता है। साध्वीश्री डाॅ.पद्मकीर्तिजी ने सुख विपाक सूत्र का बेहद सरल तरीके से वाचन किया।
उन्होंने जीवन जीने की कला पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जिस प्रकार एक देश से दूसरे देश की यात्रा पर जाने के लिए पासपोर्ट व टिकट जरुरी है वैसे ही मोक्ष में जाने के संयमरुपी टिकट का पासपोर्ट-वीजा जरुरी है। डाॅ.पद्मकीर्तिजी ने कहा कि धर्म में लीन होकर ही संयमपथ पर बढते हुए मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है। मंच पर मौजूद साध्वीश्री राजकीर्तिजी ने गीतिका प्रस्तुत की। समिति के महामंत्री चेतन दरड़ा ने बताया कि इससे पूर्व प्रत्येक सोमवार एवं बुधवार को युवाओं के विशेष संबोधन के सत्र में डाॅ.कुमदलताजी ने युवाओं से वैयावच्च विहार सेवा की विशेषताओं का उल्लेख किया। उन्होंने विहार सेवा में सक्रिय सदस्यों की संख्या में इजाफा करने की प्रेरणा दी।
दरड़ा ने बताया कि धर्मसभा में विभिन्न प्रकार की तपस्याएं करने वाले श्रावक-श्राविकाओं को साध्वीवृंद ने आशीर्वादी मांगलिक के साथ पच्चखान करवाए। समिति के सहमंत्री अशोक रांका ने बताया कि प्रवचन श्रवण का लाभ लेने के लिए शहर के अनेक उपनगरों से बड़ी संख्या में तथा चेन्नई, पुणे, सिकंदराबाद, वैल्लूर, जयपुर, भीलवाड़ा व गुजरात के मोड़सा से श्रद्धालुओं ने शिरकत की। सभी आगंतुक अतिथियों का समिति के पदाधिकारियों द्वारा सत्कार किया गया।
रांका ने बताया कि प्रतिदिन आयोजित होने वाली ‘जय जिनेंद्र’ प्रतियोगिता के विजेताओं में क्रमशः संतोष समदड़िया व विकास जैन को पुरष्कृत किया गया। धर्मसभा का संचालन अशोककुमार गादिया ने किया। सभी का आभार समिति के उपाध्यक्ष नथमल मूथा ने जताया।

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