चेन्नई. अक्सर लोगों के मन में एक धारणा बन जाती है कि- हम धर्म-कर्म, पूजा-पाठ, जप-तप करेंगे तो दु:खों से बच जाएंगे। जीवन में दु:ख हमें नहीं सताएंगे। क्या धर्म आराधना इसीलिए करते हो? क्या आपने धर्म साधना का यही उद्देश्य समझा है? यह विचार – प्रवचन दिवाकर डॉ. वरुण मुनि ने जैन भवन, साहुकारपेट में चल रही महावीर कथा में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा आप प्रभु महावीर की महा मंगल कारी – आनंदकारी जीवन गाथा श्रवण कर रहे हैं।
जिस दिन उन्होंने सन्यास लिया, उसी दिन से उनके जीवन में कष्ट, परिषह, उपसर्ग, दु:ख आने प्रारंभ हो गए। एक आचार्य तो यहां तक लिखते हैं कि 23 तीर्थंकरों के जीवन में जो दु:ख – कष्ट आए वो एक ओर, दूसरी ओर प्रभु महावीर के साधना काल में आने वाले परीषहों उपसर्गों की अगर बात करें तो भी महावीर का पलड़ा ही भारी लगता है। देवों- दानवों- मानवों- तिर्यंचों ने घोर कष्ट दिए महावीर को, दुनियां जहान के दु:ख आए महावीर के साधना काल में पर क्या वे दुखी हुए। गुरुदेव ने कहा थोड़ा चिंतन करें हो सकता है आप धर्म साधना करें आपके दु:ख टल जाएं पर कुछ कार्मिक अकाउंट इतने गहरे होते हैं कि तीर्थंकर जैसी चेतना को भी उन्हें भोगना ही पड़ता है। तो दु:ख टल सकते हैं। पर टल ही जाएंगे, इस बात की गारंटी नहीं। तो आपके मन में प्रश्न उठेगा कि- महाराज फिर धर्म कर्म करने का क्या लाभ।
गुरुदेव ने बताया- दु:ख तो जीवने का अभिन्न अंग है। दिन रात, धूप-छांव, खट्टा-मीठा, अंधेरा उजाला जैसे ये जोड़ी है वैसे ही सुख – दु:ख की भी जोड़ी है। तो हो सकता है जीवन में कभी दुख का समय आ जाए। पर धर्म वो ताकत देता है कि दुख आने पर भी आप दुखी न हों। दु:ख आना अलग बात है, दुखी होना अलग बात है। आप भले ही 32 आगम हों या 45 शा कोई भी उठाकर पढ़ लें। उन में आपको ये तो मिलेगा कि प्रभु महावीर के जीवन में दु:ख आए पर ये नहीं मिलेगा कि – महावीर दु:खी हुए। राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, नानक, मुहम्मद, यीशु, कोई भी महापुरुष हों, सबके जीवन में दु:ख आए पर क्या वे दुखी हुए नहीं ना तो बस यही प्रेरणा हमें भी लेनी है। उनके जीवन से।