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धर्म का पालन व आचरण करने वाला वन्दनीय: जयतिलक मुनिजी

धर्म का पालन व आचरण करने वाला वन्दनीय: जयतिलक मुनिजी

पूज्य गुरुदेव मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा. व लोकमान्य संत पूज्य गुरुदेव श्री रूपचन्दजी म.सा. की जन्म जयन्ति के उपलक्ष्य में श्री एस.एस. जैन संघ, नार्थ टाउन द्वारा एन्टोरवा के करीब 200 कर्मचारियों को जे अमरचंद विजयराज कोठारी परिवार, टी नगर वालों के सहयोग से नये कपड़े बांटे गए।

एन्टोरवा के उपाध्यक्ष अजीत लोढा तथा संघ के अध्यक्ष अशोक एम. कोठारी, मंत्री ललित बेताला, सहमंत्री प्रमोद ललवाणी, कोषाध्यक्ष राजमल सिसोदिया, महेश भंसाली, ज्ञानचंद कोठारी, भीमराज डुंगरवाल, बंशीलाल डोसी, सुरेश बैद एवं अनेक पदाधिकारीयों ने जरूरतमंदों को वस्त्र प्रदान किया ।

प्रवचन में गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने फरमाया कि जीव जैसी जैसी याचना करता है कृल्प- वृक्ष उनकी इच्छा की पूर्ति करता है यह सांसारिक है लेकिन धर्म की आराधन करने से सभी प्रकार की लोकिक व लौकोतर सभी प्रकार की बाधाओ को दुर करता है।

धर्म का पालन व आचरण करने वाला वन्दनीय व पुज्जनीय है, हजार काम छोड़कर धर्म ध्यान कर लो सभी आवश्यकता सहज मे पूर्ण हो जायेगी । भगवान कहते है धर्म करते करते बाधा आ जाये तो घबराओ मत, धर्म के प्रति श्रद्धा रखो अपने आप बाधाएं दुर हो जायेगी, जिसके पास धर्म हैं सदा काल सुखी रहेगा, इसलिये धर्म को जीवन में धारण करो । धर्म ऐसा साथी हैं जो जीवन भर साथ रहता है, यहां तक धर्म तो इस भव व पर भव भी साथ रहता है, यहां तक की धर्म सिद्ध शिला भी पहुंचाता है, धर्म कभी साथ नही छोड़ता, व्यक्ति उसका साथ छोड़ता है बिना धर्म के दर-दर की ठोकरे खाता है कभी नरक कभी तिर्यन्च। धर्म संसार के सभी जीवो को साता पहुचाता है, तप करने वाले चारो आहार का त्याग करते है फिर भी उनको साता रहती हैं। लिया हुआ कर्जा चुकाना ही पड़ता है जब तक

नही चुकाओगे तब तक मुक्ति नहीं है वापिस जन्म लेना पड़ेगा। बारह व्रत में बताया है पराई धरोहर को हजम नही करना। जहा धर्म का वास नही वहा करुणा नही है, अहिंसा सेवा, तप जहा रहता है वहां देवता निवास करते है तथा, अहिंसा, सेवा, तप वालो की देवता भी सेवा करते है देवलोक के देवता जानते है मैं व्रत प्रत्याखान नही कर सकता हुँ निर्जरा नहीं कर सकते है । लेकिन सेवा कर सकते हैं। जब भी आप बाहर जाते है तो पहले धार्मिक

उपकरण साथ रखो, सामायिक करे या नही भावना से व्यक्ति तिर जाता है ।

ज्ञानचंद कोठारी ने धर्म सभा का संचालन किया।

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