चेन्नई. साध्वी नेहाश्री ने अयनावरम स्थित जैन भवन में प्रवचन में कहा जितने सावधान हम धन की सुरक्षा के लिए रहते हैं उससे भी कहीं ज्यादा सावधान जीवन के लिए रहना चाहिए। क्षेत्र धर्म आराधना में बाधक नहीं है।
धर्म स्थान में बैठकर भी कर्मबंधन हो सकते हैं और घर में बैठे-बैठे भी कर्मों की निर्जरा हो सकती है। किसी भी क्षेत्र में धर्म का पुरुषार्थ और चिंतन किया जा सकता है। हमारे विचार उत्तम होने चाहिए।
काल क्षण की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा धर्म साधना में काल कभी भी बाधक नहीं है। इस पंचम काल में भी आत्मा एक भव अवतारी बन सकती है। इस चातुर्मास काल में आसानी से कर्म निर्जरा कर सकते हैं।
इस काल में साधु-संतों का सान्निध्य मिलता है और कहा गया है कि श्रावण महीने में अच्छे श्रोता बनें। जब छोटी-छोटी बातों में गुस्सा आता है तो चिंतन करें कि क्या मैं अच्छा श्रोता नहीं हूं।
भादवा कहता है कि भदृक बनो। खुद का जीवन कल्याणकारी बनाओ तथा दूसरों के लिए भी कल्याणकारी बनो।