भिक्षु दया कार्यक्रम और प्रवर्तक पन्नालाल जयंती और आचार्य शुभचंद्रमुनि पुण्यतिथि पर
चेन्नई. रविवार को पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम जैन मेमोरियल सेन्टर में विराजित उमराव ‘अर्चना’ सुशिष्या साध्वी कंचनकंवर, साध्वी डॉ.सुप्रभा ‘सुधा’ के सानिध्य में राजस्थान केसरी प्रवर्तक पन्नालाल महाराज की 132वीं जयंती और आचार्य शुभचंद्र महाराज की पुण्यतिथि सामायिक और तप त्याग के साथ मनाई गई। महापुरुषों को श्रद्धांजलि देने के लिए भिक्षु दया का आयोजन किया जिसमें बड़ी संख्या में समाज के पुरुषों और बच्चों ने भाग लिया और एक दिन की भिक्षुचर्या का पालन किया।
साध्वी डॉ.उदितप्रभा ‘उषा’ ने कहा कि दो-दो महापुरुषों की जन्म व पुण्यतिथि मना रहे हैं। हमारा देश अनेकों त्यागी, गुरु, धर्म आराधना, साधना और अर्चना से भारत विश्व गुरु कहलाया। गुरु की कृपा से पाप, ताप, संताप, अभिशाप सभी दूर होते हैं। प्रवर्तकश्री का व्यक्तित्व अपार स्नेह, आत्मीयता और निराली महिमा का था। मात्र जयंती मनाने मनाना ही कर्तव्य की इतिश्री नहीं है, उनके गुणों को जीवन में उतारें, उनके दिखाए मार्ग का अनुकरण करें।
गुरुओं के आशीर्वाद से ही सच्ची समझ मिली है, वरना पाप, अपराध जीवन में अधिकार जमाकर बैठे हैं। प्रवर्तकश्री ने जीवदया, अहिंसा, शिक्षा, चिकित्सा, स्वदेशी प्रचार, पशुबलि निषेध जैसे कार्यों के लिए समर्पित जीवन जीया कि लोग स्मरण करते हैं। स्वयं भी चिंतन करें कि हम क्या कर रहे हैं। जितना धन इक_ा कर रहे हैं, संताप और कष्ट बढ़ रहे हैं।
जीवन में तीन बातें- पहली सम्यक समझ का कैंडल हो तो जीवन सुंदर बन जाए। दूसरी संकल्प और समर्पण के हैंडल से हर कार्य बनेगा, सभी को साथ लेकर चलें। तीसरी समाधि के सैंडल से जीवन के कंटीले पथ पर समभाव से आगे बढ़ें। पर्वाधिराज की आराधना में आत्मावलोकन करें, अच्छाईयों और कमजोरियों को पहचानें।
साध्वी डॉ.हेमप्रभा ‘हिमांशु’ ने कहा कि जो स्वयं आत्मगुणों की साधना करे, स्व के साथ पर के कल्याण और प्रेरणास्रोत बने वही साधु है। साधु स्व के साथ दूसरों के भी कार्य सिद्ध करते हैं। प्रवर्तकश्री व आचार्यश्री दोनों ही महापुरुष महान साधक, युग महापुरुष और सरलता की प्रतिमूर्ति थे। आचार्य शुभचंद्रजी का जन्म सोनी परिवार और प्रवर्तक पन्नालालजी का जन्म माली परिवार में हुआ।
दोनों ही संत अजैन परिवारों से जन्मे होकर भी जिनशासन पद्धति को अपनाया और धर्म के प्रकाश से संपूर्ण जगत को प्रकाशित किया। दोनों ही महापुरुष जिनशासन के बागबां थे। उन्होंने पू.मधुकर मुनि की दीक्षा में अनेकों बाधाएं और घर-बाहर सभी जगहों पर विरोध होने पर भी स्वयं के स्वास्थ्य का ध्यान किए बिना भी पहुंचकर दीक्षा प्रदान की। उनका श्रमण संघ के निर्माण, संघटन और एक सूत्र में बांधने का अविस्मरणीय भूमिका रही। वे एकता के सूत्रहार और स्वाध्याय संघ के प्रणेता थे।
स्वाध्याय संघ द्वारा यथावत धर्माराधना कराने का कार्य उन्होंने समाज में घोर विरोध, आलोचनाएं पर भी निर्भीक होकर कराया। उनकी दूरदर्शिता से ही आज छोटे-छोटे गांवों में भी पर्यूषण धर्माराधना हो रही है। उन्होंने समाज में मृत्युभोज जैसी अनेकों कुरीतियों को बंद करवाया व। पू.प्रवर्तकश्री को युगों-युगों तक भूल नहीं पाएंगे। दोनों ही युगपुरुष संतों को भिक्षु दया के रूप में श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। जिन्होंने एक दिन का साधुपना लिया उन्हें धन्यवाद है।
साध्वी डॉ. इमितप्रभा ने पर्यूषण के पांचवें दिन अंतगड़ सूत्र का वाचन किया। उन्होंने कहा कि भिक्षु दया के कार्यक्रम में एक दिन के लिए स्वयं को साधु बनाकर, नियम पालन करें और यदि इसे यथार्थ रूप दें तो इसी भव से मोक्षमार्ग प्रशस्त हो जाए। राजस्थान केसरी प्रवर्तक पन्नालालजी महाराज व आचार्य शुभचंद्रजी महाराज का हम सब पर बहुत उपकार है। दोनों ही महापुरुषों के एक हाथ में शांति तो दूसरे में क्रांति थी।
इस अवसर पर मंत्री शांतिलाल सिंघवी, मदनसिंह कुम्भट और प्राज्ञ जैन संघ के कमलचंद खटोड़ ने अपने विचार रखे। एगमोर के विधायक रविचंद्रन उपस्थित हुए जिनका सम्मान शाल, माला से किया गया।
धर्मसभा में आरती ललवाणी, दर्शना सुराणा और आशा मेहता-8 के प्रत्याखान सहित अनेकों तपस्वियों ने विभिन्न तप के पच्चखान लिए।
धर्मसभा में चातुर्मास समिति के अध्यक्ष के.नवरतनमल चोरडिय़ा, पारसमल सुराणा, जेठमल चोरडिय़ा, हीराचंद पींचा एम.नवरतनमल चोरडिय़ा, गौतमचंद गुगलिया, रमेश कांकलिया, पदमचंद सुराणा, नवरतनमल पींचा, सिद्धेचंद लोढ़ा सहित श्री एएमकेएम महिला मंडल, श्री प्राज्ञ जैन युवा संघ, श्री प्राज्ञ जैन महिला मंडल,,टीम सिद्धा सहित अनेकों संस्थाओं के सदस्य उपस्थित रहे।