Share This Post

Featured News / ज्ञान वाणी

देवलोक में जाना है तो धर्म करो: जयतिलक मुनि

चेन्नई. दिंडीवनम में विराजित जयतिलक मुनि ने कहा कि नर के सात प्रकार के पृथ्वी में दस प्रकार के वेदना है। नारकीय जीव निरंतर भागते रहते है वहां भोग नाम की चीज ही नहीं है। उनको मालूम है परमधामी देव आकर मारनक वाले है। क्षेत्रकृत वेदना,शारीरिक रोगादि से पीड़ीत रहते है, उनको मुह और पेट मिल तो गया खाने पीने को हजार साल से कुछ नहीं मिला।

शरीर से दुर्गंध आती है। सूर्योदय से 45 मिनट में नरकारसी आती है। श्रोणिक महाराज ने नवकारसी में पानी पी लियर तो उन्हें नर्क का बंध हो गया। पहला आरा सुखमा सुखमा चार पल्योपाम का होता है। शरीर निरोग और देवताओं कं समान कहोता है।

आभूषण और कपड़े कल्पवृक्ष से मिलते है। चने की दाल जितना भोजन करते है और तृप्त हो जाते है। और अंत में कल्प वृक्ष समाप्त हो गया। तब प्रथम तीर्थंकर त्रषभ देव ने असि मसि कृषि से जीवन यापन करना सिखाया।

बाकी दो आरे में शंति से जीने का अवसर है। पांचवे आरे में भोग और छटे में टिकट कटवाना है। जहां दुख ही दुख है। अभी धर्म कर लो तो देव लोक में जाओगे।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar