Share This Post

Featured News / ज्ञान वाणी

दूसरों को धर्ममार्ग का प्रेरक होता है तीर्थंकर नामकर्म का अधिकारी: साध्वी कंचनकुंवर

दूसरों को धर्ममार्ग का प्रेरक होता है तीर्थंकर नामकर्म का अधिकारी: साध्वी कंचनकुंवर

चेन्नई. 20 जुलाई, शनिवार को पुरुषावाक्कम के एएमकेएम मेमोरियल सेंटर में विराजित साध्वी कंचनकुंवर के सानिध्य में साध्वी हेमप्रभा ‘हिमांशु’ ने सुखविपाक सूत्रों की व्याख्या की तथा अनेकों उद्धरणों द्वारा समझाया। उन्होंने सुबाहुकुमार के गृहस्थजीवन तथा उनके राज्य हस्तीशीर्ष में भगवान महावीर के आगमन तथा संपूर्ण प्रजा सहित राजा द्वारा पांच अभिगमों सहित उनके दर्शनों को जाने का प्रसंग सुनाया।

साध्वी ने पांच अभिगमों की व्याख्या भी विस्तार से समझाई। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति धर्मकार्य स्वयं करता है व दूसरों को भी उसका प्रेरणा दे तो उसका उसे धर्मदलाली का लाभ प्र्राप्त होता है। आपकी प्रेरणा से धर्मस्थान में आया हुआ एक भी व्यक्ति जितने समय धर्मस्थान में रहता है उसकी प्रवृत्ति पाप कर्मों से दूर हटती है और धर्मध्यान शुरू होता है। श्रीकृष्ण ने स्वयं संयम नहीं लिया लेकिन उन्होंने हजारों जनों को संयम धारण कराने के कारण तीर्थंकर नामकर्म का बंध किया था। इसका फल कभी निष्फल नहीं जाता। धर्मस्थान में किसी को लेजा नहीं पाओ तो कम से कम किसी को जाने से मना नहीं करना चाहिए।

साध्वी डॉ.इमितप्रभा ने आर्तध्यान के अनुसार मनुष्य मन के चार प्रकार समझाते हुए कहा कि पहले प्रकार का मनुष्य चाहता है कि मैं भी सुखी रहंू और दूसरे भी सुखी हो। दूसरा चाहता है कि मैं सुखी रहंू लेकिन दूसरे दुखी रहे। तीसरा प्रकार मुझे दुख हो पर दुसरा सुखी रहना चाहिए और चौथा प्रकार का व्यक्ति चाहता है कि मैं भी दुखी रहंू और दूसरे भी दुखी रहे।

इसमें दूसरा ध्यान रौद्रध्यान है। आर्तध्यान वाला मनुष्य स्वयं दुखी होता है लेकिन दूसरों को दुख नहीं देता। आर्तध्यान किसी को भी हो सकता है लेकिन रौद्रध्यान पाप का कारण है, ऐसा व्यक्ति स्वयं सुखी रहना चाहता है लेकिन दूसरों को दुख पहुंचाता है। इसके चार कारण है- 1. हिंसानुबंधी- जो दूसरों को कष्ट देता है। किसी को दुख देना उत्कृष्ट रौद्रध्यान है। ऐसा व्यक्ति परिणाम के बारे में नहीं सोचता है।

साध्वी ने मनुष्य के दैनिक जीवन में छोटी-छोटी क्रियाओं में होनेवाले आार्तध्यान और रौद्रध्यान के प्रकार और परिणामों की व्याख्या की।
पहला-किसी जीव को संकल्पपूर्वक हिंसा करना, किसी को हिंसा करते हुए देखकर स्वयं भी अपने मन से उसका अनुमोदन करता है, दूसरा असत्यवादी रौद्र, स्वयं के द्वारा किए गए गलत कार्य की अनुमोदना करने से, तीसरा- किसी की वस्तु को चुराकर उसे कष्ट पहुंचाने से, चौथा- परिग्रह और व्यापार आदि के द्वारा किए गए धनोपार्जन का तरीका गलत होना।

मनुष्य से पाप सदा हंसते-हंसते करता है, प्रमाद में करता जाता है। कुछ समय की खुशी के लिए वह अपने लिए जन्मजन्मांतर का बंध कर लेता है। व्यक्ति को आर्त और रौद्रध्यान से बचा जाए तो धर्मध्यान की राह मिल जाती है और मोक्षमार्ग प्रशस्त होता है।

भगवान महावीर ने कहा है कि यदि रौद्र ध्यान और आर्तध्यान से बचना है तो जैसी मेरी आत्मा है वैसी ही सभी की आत्मा को जानना होगा। स्वयं सुख चाहते हो तो औरों को भी सुख देना होगा कि मेरे निमित्त किसी को भी कोई कष्ट ना हो।

दोपहर 2 बजे से लोगस्स पाठ की धार्मिक परीक्षा प्रतियोगिता हुई। गौतमलब्धि कलश समर्पण और रविवार को विश्व शांति जाप रहेगा। धर्मसभा में अनेकों श्रद्धालुओं ने उपस्थिति दी।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar