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दुर्गुणों से सद्गुणों की ओर ले जाती है जिनवाणी: जयधुरंधर मुनि

दुर्गुणों से सद्गुणों की ओर ले जाती है जिनवाणी: जयधुरंधर मुनि
जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में श्रावक के 12 व्रतों का विवेचन करते हुए जयधुरंधर मुनि ने कहा जिनवाणी नर को नारायण , पुरुष को पुरुषोत्तम, कंकर को शंकर, जीव को शिव , खुद को खुदा और भक्तों को भगवान बनाने का सामर्थ्य रखती है, लेकिन उसके लिए साधक को बुराइयों से अच्छाइयों की ओर कदम बढ़ाने चाहिए। दुर्गुणों को छोड़कर सद्गुणों को अपनाना चाहिए तथा आव्रती से व्रती बनना चाहिए।
आत्मा और शरीर के पारस्परिक संबंध होने से दोनों एक दूसरे के पूरक होते हैं परंतु आत्मा की महत्ता अधिक बताई गई है क्योंकि जब तक प्राण होते हैं तब तक ही शरीर के अंग उपांग कार्य करते हैं । मरणोपरांत कानों से सुना नहीं जाता, आंखों से देखा नहीं जाता, मुंह से बोला और खाया नहीं जाता तथा हाथ और पैर भी सक्रिय नहीं होते । अतः आत्मा की शुद्धि होनी जरूरी है। 
सातवें व्रत के अंतर्गत एक श्रावक ग्रहस्थ धर्म का पालन करते हुए शारीरिक और आत्मिक दोनों सिद्धियों का ध्यान रखता है। इस व्रत के द्वारा विभिन्न प्रकार की उपभोग की वस्तुओं का परिमाण करते ही अन्य सभी उपयोग में नहीं आने वाली चीजों के पाप से सहज में ही बचाव हो जाता है। इस व्रत में आयुर्वेदिक नैसर्गिक आदि इलाज का विज्ञान एवं आरोग्यता का रहस्य छुपा हुआ है।
एक सच्चा अच्छा आदर्श श्रावक 26 बोलो के अंतर्गत स्वयं के उपयोग में आने वाली वस्तुओं की सीमा तय करता है । शरीर पोंचने के साधनों की मर्यादा रुमाल, अंगोछे नैपकिन आदि के द्वारा कर ली जाती है । एक संस्कारित व्यक्ति अपना रुमाल अलग अवश्य अलग रखता है अन्यथा दूसरों के रुमाल उपयोग में लेने से संक्रामक बीमारी फैलने का खतरा रहता है।
दांतों की सुरक्षा हेतु दंत मंजन उपयोग में लिया जाता है लेकिन उसकी भी मर्यादा करनी चाहिए। नहाने – धोने के लिए उपयोग में आने वाले पदार्थ जैसे आंवला, शिकाकाई आदि फलों का परिमाण करने से शेष सभी प्रकार की वनस्पति के पाप से बच जाता है ।
शरीर के जोड़ों को तंदुरुस्त बनाए रखने के लिए मांसपेशियों को मजबूत बनाया रखने के लिए उपयोग में आने वाले तेल की मर्यादा करने से अन्य प्रकार के तेलों के उपयोग से वह श्रावक बच जाता है।
लेप के पदार्थ की भी सीमा बांधनी चाहिए। एक श्रावक स्नान करने के लिए भी पानी की मर्यादा करता है जिसके फलस्वरूप अनावश्यक अपकाय की हिंसा से बच जाता है ।
महीने के लिए वस्त्र आदि की जोड़ियों की मर्यादा रखनी चाहिए अन्यथा एक व्यक्ति की अलमारी तो कपड़ों से भरी हुई रहती है और दूसरी और किसी के पास पहनने के लिए भी कपड़े नहीं होते। चंदन, केसर आदि सुगंधित पदार्थ का उपयोग शरीर के स्वास्थ्य के लिए किया जाता है लेकिन एक श्रावक उन सभी पदार्थों के भी सीमा बांध देता है। फूल चाहे वह पूजा में काम आए अथवा सजावट के लिए उपयोग में लिए जाए उनकी भी मर्यादा करनी चाहिए।
धर्म सभा का संचालन केएल जैन ने किया। रविवारीय प्रवचन प्रातः 9:30 बजे होगा । मध्यान्ह 1:00 से साईंकाल 4:00 बजे तक संस्कार शिविर का आयोजन होगा।

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