वेपेरी स्थित जयवाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा दुखों से भागने के बजाय उससे संघर्ष करना चाहिए। संघर्ष करने वाला ही महापुरुष बन सकता है ।सहनशक्ति के अभाव में थोड़े से दुख में भी जीव विचलित बन जाता है। दुख के समय शोक नहीं शोध करना चाहिए। दुख के कारणों को जानने पर ही उसका निवारण किया जा सकता है।
दुख के पांच कारण बताते हुए मुनि ने कहा व्यक्ति जो चीज उसके पास नहीं है ,उसके लिए दुखी हो जाता है । अभाव को अभाव नहीं स्वभाव समझना चाहिए। जो मिला जितना मिला उसमें संतोष रखने वाला ही सुखी बन सकता है । वास्तविक दुख से ज्यादा दुख की कल्पना मात्र से भी कोई दुखी बन सकता है। कल्पना एक तरह का सपना होता है जो कभी अपना नहीं बन सकता।
हर व्यक्ति को वर्तमान में जीना सीखना चाहिए। इच्छा की पूर्ति में नहीं अपितु समाप्ति में सुख है। इच्छा आकाश के समान अनंत होती है। एक इच्छा पूरी होने पर दूसरी इच्छा जागृत हो जाती है।जिसका जितना पुण्य होगा उसे उतना ही प्राप्त होगा। संतोष सबसे बड़ा धन होता है। जीव को ज्यादा सुविधाभोगी नहीं बनना चाहिए क्योंकि सुविधा ही दुविधा का कारण बनती है। दुख को मजबूरी में सहन करने के बजाय मजबूती से सहन करना चाहिए। मजबूरी में दुख ज्यादा अखरता है जबकि हंसते हंसते सहन करने से मनोबल मजबूत बनता है।
इस अवसर पर जयपुरन्दर मुनि ने कहा व्यक्ति को सुकोमल नहीं अपितु सहनशील बनना चाहिए। जो शरीर पर ज्यादा ममत्व रखता है वह समत्व में नहीं रह सकता । शरीर साधना का साधन होने से उसकी सुरक्षा करना जरूरी है पर उसके प्रति अत्यधिक आसक्ति रखने से शरीर सुकोमल बन जाता है। कर्म के उदय बस बीमारी के आने पर व्यक्ति को हाय त्राय करते हुए व्याकुल नहीं बनना चाहिए।
हाय त्राय करने से किसी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। वर्तमान युग में शारीरिक श्रम घटने से रोगों में उत्तरोत्तर वृद्धि होते जा रही है और रोग प्रतिरोधक क्षमता घटती जा रही है। मनुष्य को उद्यान के सुकोमल फूल नहीं अपितु जंगल के पौधे सम बनना चाहिए जो हर परिस्थिति का सामना करने में सक्षम हो।
धर्म आराधना एवं तपस्या के द्वारा सहन शक्ति का विकास होता है। जिसने सहन किया उसी का अस्तित्व रहे पाता है । सहन करने के कारण ही पत्थर मूर्ति का रूप एवं मिट्टी घड़े का रूप धारण कर पूजनीय बन पाता है। जयमल जैन चातुर्मास समिति के प्रचार प्रसार चेयरमैन ज्ञान चंद कोठारी ने बताया धर्म सभा में विभिन्न नगरों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।