यहां शांति भवन में विराजित ज्ञानमुनि ने कहा संसार के ज्यादातर प्राणी मोह-माया में फंसे हैं जो कि दुख का मूल कारण है। इस संसार में ऐसी कौन सी वस्तु है जो हमारी है। ये सभी ठाट-बाट की सामग्री यहीं रह जाएगी। जीव पास है तो सब अपने हैं चला गया तो कोई अपना नहीं।
सारी मोह-माया भी उसी के साथ चली जाती है। जीव सब कुछ छोड़ अकेला ही चला जाता है पाप का बोझ लेकर। कहावत है कि जीते को रोटी नही मरने बाद रसोई करते हैं। आज के युग में सात पुत्र होने के बावजूद वृद्ध मां को अपने रोटी पकाकर खानी पड़ती है।
सातों को अकेली पालने वाली माता को सातों मिलकर नहीं पाल सकते। ये कैसा कलियुग है। बेचारे वृद्ध मांं-बाप भार लगते हैं। जब उनके पास धन दौलत थी सब पूछते थे, धन समाप्त हुआ तो पूछ खत्म हो गई।
जीवन में फलना हो तो माता-पिता का आशीर्वाद लें बद्दुआ नहीं। पहले के अनपढ़ भी अनुभवी होते थे, आजकल के पढ़े-लिखे अनपढ़ हैं।