चेन्नई. एमकेबी नगर के एस एस जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मप्रभा ने कहा कि समय का चक्र अविराम गति से निरंतर चलता रहता है। जैसे किसी घड़े में एक एक बूंद रिसकर घड़े का पानी पूरा खत्म हो जाता है वैसे ही पल-पल करते जीवन खत्म हो रहा है। तमाम कोशिशों के बवाजूद जीवन की क्षणभंगुरता अटल है। जन्म के पश्चात मत्यु की निश्चयता नियति का एक ऐसा फैसला है जिसे स्वीकार करने के लिए हम साधन संपन्न होते हुए भी विवश हैं।
याद रहे अमूल्य हीरे सदृश्य इस जीवन को हम विषय वासना, भोग विलास या प्रमाद में पड़कर यूं ही तो नहीं गंवा रहे। इस मनुष्य जीवन का सद्उपयोग हो रहा है कि नहीं या पूरी जिंदगी छलनी से पानी निकालने का कार्य तो नहीं कर रहे। साध्वी स्नेह प्रभा ने कहा कि दान तीन प्रकार के होते हैं अभयदान, सुपात्र दान और अनुकंपा दान।
मरते हुए प्राणी के प्राण की रक्षा और भयभीत प्राणी को भय से रक्षा करना अभय दान है। साध्वी साधुओं को दान देना सुपात्र दान है। दया भाव से करुणा भाव से प्रेरित होकर दीन दुखियों, असहायों को दान देना अनुकंपादान कहलाता है। अभय दान और सुपात्र दान कर्म निर्जरा का स्वरूप होता है।
अनुकंपादान पुण्यबंध का कारण होता है। लाचारीपूर्वक या अहंकार भाव से दान नहीं देना चाहिए। दान हृदय से देना चाहिए या आवश्यकता के अनुसार देना चाहिए। बिना मांगे प्रसन्नता पूर्वक और गुप्त दान देना श्रेष्ठ दान है।