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ज्ञान वाणी

दया भाव से जाग्रत होता है आत्मज्ञान: श्रुतमुनि

चेन्नई. रॉयपेट्टा स्थित हेमराज सिंघवी जैन स्थानक में विराजमान श्रुतमुनि ने कहा कि हमें जगाने और सिखाने के लिए ही संत आते हैं। ये हमें शिक्षा देते हैं कि आत्मा ही परमात्मा है।

हर आत्मा में ज्ञान है, शक्ति है पर आत्मा पर कर्मो का आवरण आ गया है। पाप दुख देने वाले हैं। बारबार जन्म मरण में लाने वाले हैं। 18 तरह से पाप का बंधन होता हैऔर 82 तरह से पापों का फल भोगना पड़ता है।

पाप छुपाने से नहीं छुप सकते हैं पर किए हुए कर्म उदय में आते हैं जो भुगतने पड़ते हैं। इन पापों के कारण कब कौन सा कर्म उदय में आएगा पता नहीं। अनावश्यक पाप से बचने, पाप को कम करने से सौंदर्य बढ़ता है, दया भाव आता है।

दया भाव से आत्मज्ञान जाग्रत होता है। पाप भी कई तरह के होते है एक जो सूखी घास के समान होता है जो जल्दी जलता है और अपने आप जलकर नष्ट हो जाता है।

दूसरा जलती हुई लकड़ी के समान जो धीरे धीरे जलता है। तीसरा लोहे के समान जो धीरे धीरे गर्म होता है पर गर्मी देर तक बनी रहती है। इस प्रकार के पाप देर तक दुख देते हैं। तीसरा पेट्रोल के समान जो खुद भी जलता है और दूसरों को भी जलाता है। ये पाप खुद के साथ ही आश्रित लोगों को भी दुख देते हैं।

पाप पतन की ओर ले जाते हैं। मानव तो गलतियों का पुतला है। पाप से बचना यानी दुख से बचना है। पाप से बचने के उपाय में अगर पाप हो जाए तो पहले पश्चाताप करना, दूसरा प्रायश्चित करना, तीसरा प्रतिक्रमण करना यानी पाप का चिंतन करते हुए उससे दूर हटना और चौथा प्रतिज्ञा लेना यानी पच्छखान लेना।

इससे पुराने कर्म नष्ट होंगे। नियम में आना, हिंसा नहीं करूंगा, अपशब्द नहीं बोलूंगा, किसी तरह के पाप कर्म नहीं करूंगा। इस प्रवृत्ति से धीरे धीरे आत्मा शुद्ध हो जाएगी।

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