चेन्नई. साहुकारपेट जैन भवन में विराजित उपप्रवर्तक गौतममुनि ने शनिवार को कहा जीवन को परम पावन बनाने के लिए मनुष्य को करुणा और दया का भाव रखना चाहिए। जहां दया और सदभाव नहीं वहां पर धर्म नहीं किया जा सकता। मन में दया भाव उत्पन्न होने के बाद ही सही मायने में धर्म किया जा सकता। उन्होंने कहा जीवन में कुछ अलग करने वाला मनुष्य खुद को धर्म के कार्यो से जोडऩे का प्रयास करता है। उत्तम जीवन व्यतीत करने के लिए दूसरों के प्रति करुणा का भाव रखना चाहिए। जितना हो सके उपकार के कार्य करने चाहिए। दया लाभकारी तब साबित होता है जब उसके स्वरूप को सही से समझा जाए। दया से ही प्रत्येक आत्माओं को पोषण मिलता है। दूसरों के प्रति दया भाव रखने के बाद खुद के प्रति भी लोगों में यही भाव आने लगता है। सागरमुनि ने कहा मनुष्य की क्रिया उसकी आवाज से ज्यादा कार्य करती है। तेज आवाज से कुछ नहीं किया जा सकता, लेकिन क्रिया करके जीवन को बदला जा सकता है। जिस प्रकार मनुष्य के पैर उसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाते हैं उसी प्रकार आचरण भी आत्मा को एक स्थान से दूसरे जगह ले जाने का कार्य करता है। जीवन में सफल होना है तो खुद में शीतलता लाने का प्रयास करना चाहिए। इस मौके पर विनयमुनि और गौतममुनि के सानिध्य में दो दिवसीय स्वास्थ्य जांच शिविर का हिन्दू धर्मादा समिति के सदस्य आरआर गोपाल ने उद्घाटन किया। संघ के अध्यक्ष आनंदमल छल्लाणी के अलावा ज्ञानचंद नाहर सहित अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे। संचालन मंत्री मंगलचंद खारीवाल ने किया। प्रकाशचंद गुलेच्छा ने बताया कि शिविर में लगभग दो सौ लोगों के कान, नाक और गले की जांच की गई।
दया भाव आने पर ही होता है धर्म: गौतममुनि
By saadhak
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