कोलकाता . अंत:करण के हर्षित गदगद भावों से उठने वाली आशीर्वाद की पवित्र भावना से जो भी वस्तु में मिलती है चाहे वह छोटी या सामान्य ही क्यों न हो, परंतु वो करोड़ों के रूप में परिवर्तित हो जाती है।
वही फलती और फूलती है उक्त विचार राष्ट्र संत कमल मुनि कमलेश ने महावीर सदन में धर्म सभा में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि बड़ों का मंगलमय आशीर्वाद तीन लोक की संपत्ति से बढ़कर है। बिना मांगे मिला हुआ तिनका भी दूध से बढ़कर है।
मांग कर लिया हुआ दूध में पानी के समान हो जाता है। मुनि ने कहा कि दिल दुखाकर, छीनकर लिया हुआ दूध भी खून के रूप में परिवर्तित हो जाता है। वह अभिशाप बनता है। छीना हुआ मूल को भी बर्बाद कर देता है। संकट और परेशानी को खुला निमंत्रण देना है।
राष्ट्र संत ने कहा कि वस्तु नहीं वास्तु में रहे हुए भाव रूपी आशीर्वाद का प्रसाद भगवान से बढ़कर है निस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्य को अदा करते हुए अगले के दिलों में स्थान बना लेता है। वह विश्व पूजनीय बनता है। मर कर भी अमर हो जाता है।
हम नि:स्वार्थ होकर प्राणी मात्र के प्रति समर्पित होना सबसे बड़ा धर्म और पूजा है। जैन संत ने कहा कि इंसान ही नहीं पशु पक्षी प्राणियों की आत्मा से निकली हुई आशीर्वाद की आवाज कभी खाली नहीं जाती है।
उसमें तकदीर बदलने की क्षमता मौजूद है। आत्मा के साथ लगे बुरे कर्मों को समाप्त करने की क्षमता भी उस में विद्यमान हैं। इसी जन्म में किए हुए सत कर्मो का फल इसी जन्म में प्राप्त हो सकता है।
48 मिनट बाद भी उसका प्रत्यक्ष प्रभाव आपको सामने देखने को मिल सकता है। बिन मांगे मोती मिले मांगे मिले न भीख ऐसे जिंदगी में कभी नहीं भूलना चाहिए।
आशीर्वाद का अनमोल धन आत्मा के लिए जन्म जन्मांतर की पूंजी हो जाती है। सामान्य आत्मा का आशीर्वाद ज्यादा प्रभावी होता है क्योंकि उसमें अहो भा व का समावेश होता है।