गाँव साँझी में महिलाओं ने गाई तपस्वियों की महिमा
बेंगलुरु। आचार्यश्री देवेंद्रसागरजी एवं साध्वीवर्याश्री मोक्षज्योतिश्रीजी की निश्रा में शनिवार को 250 से अधिक संतिकरम तप के तपस्वियों ने संतिकरम तप के पूर्णाहती निमित्त से श्री संतिकरम पूजन पढ़ाई गई।
प्रातः 8 बजे आरम्भ हुआ ये पूजन 12 बजे तक चला। पूजन में सभी तपस्वियों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। पूजन में सम्मिलित हुए श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए आचार्यश्री ने कहा की तप की आराधना निर्विघ्न परिपूर्ण होने के बाद महोत्सव किया जाता है, जिसमें सुंदर व उत्कृष्ट द्रव्यों से परमात्मा की पूजा पढ़ाई जाती है।
उन्होंने कहा कि मानसिक शांति के लिए आध्यात्मिक जीवन में सरलता से आगे बढ़ने के लिए परमात्मा की पूजा आवश्यक है।
मध्यान काल में सिद्धितप के तपस्वियों के लिए गाँव साँझी का आयोजन हुआ।
आचार्यश्री ने कहा कि जगत में ऐसा कोई पदार्थ नहीं है, जो निर्दोष तप से हमें प्राप्त न हो अर्थात तप से उत्तम पदार्थों की प्राप्ति होती है।
तप रूपी अग्नि में कर्म रूपी घास जलकर नष्ट हो जाती है। कर्मों से रहित तप का फल हजार जिव्हा वाला व्यक्ति भी नहीं बता सकता।
देवेन्द्रसागरजी ने कहा कि इस संसार में अगर कोई मुश्किल काम है तो वह रसेंद्री का त्याग है।
जैसे एक सिपाही सीमा पर अपने राष्ट्र की सुरक्षा करता है, वैसे ही यह तपस्वी जिन शासन के सिपाही है, जो धर्म की रक्षा करते हैं। तप करने पर होने वाले आनंद को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। यह तो उनके चेहरे की खुशी और तेज ही बताता है।