चेन्नई.
सईदापेट जैन स्थानक में विराजित ज्ञानमुनि ने कहा संसारी लोग ढ़ोंगी बाबाओं के चक्कर में पड़ जाते हैं लेकिन मिलता कुछ भी नहीं है बल्कि दुख और बढ़ जाता है। ऐसे बाबाओं के चक्कर में धन, मन, तन का नाश न करें। जो बाबा धन और औरतों के रागी हैं वे आपके दुख दूर कैसे करेंगे। धर्म और तप से ही कर्मों की निर्जरा होगी एवं दुख का नाश होगा। स्वयं परमात्मा भी केवल कर्म निर्जरा का मार्ग बताते हैं इसलिए अंध श्रद्धा, मिथ्यात्व का, कुदेवा, कुगुर व कुधर्म का त्याग करें। यह आपकी गति बिगाड़ देगा। दर्शन अर्थात देखना, यहां पर दर्शन अर्थात धर्म मार्ग, विचार पर श्रद्धा करना ही स यकत्व एवं धर्म पर श्रद्धा करना ही दर्शन है। हजारों धर्म को छोड़कर आत्मधर्म यानी जिन धर्म पर श्रद्धा करना है। ज्ञान, चारित्र व तप है लेकिन स यत्व श्रद्धा नहीं है तो उसकी मुक्ति नहीं होगी। स यकत्व के आठ लक्षण हैं-दृढ़ धर्मी, गुणग्राहक, समतावान, क्षमावान, अनासक्त, धीरजवान, सत्यवादी, दुखों से घबराते नहीं एवं धर्म में सदा मन रखते हैं। मुनि ने सुलसा श्राविका की स यकत्व श्रद्धा का उदाहरण देकर श्रावकों को श्रद्धा पर दृढ़ रहने को कहा जिनकी प्रशंसा स्वयं परमात्मा ने भी की।