चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित संयमरत्न विजय ने कहा चातुर्मास ज्ञान, ध्यान, स्वाध्याय का प्रकाश लेकर आता है। चातुर्मास हमारे बुरे कर्मो का पर्दाफाश करने के साथ देव-गुरु धर्म की आस व उन पर दृढ़ विश्वास लेकर आता है।
करेले व नीम का रस, चिरायता व सुदर्शन चूर्ण जिस प्रकार कड़वा होने के बावजूद गुणकारी होता है उसी प्रकार जीवन को सन्मार्ग की ओर लाने के लिए गुरु के वचन कड़वे होने के बावजूद हमारे लिए हितकारी व गुणकारी होते हैं। सुवचनों का हमें उच्चारण ही नहीं कर आचरण में भी लाना है। हमारे मुख से कोमल व मधुर शब्द ही निकलना चाहिए। हर क्षेत्र में सफल होने के लिए हमारी जीभ को संयमित रखने के साथ सुवासित भी रखना होगा।
सज्जन पुरुष की वाणी में यथार्थता-सत्यता होती है, दूसरों का भला हो ऐसे वचन बोलता है, अनावश्यक शब्दों का प्रयोग नहीं करता, उसकी वाणी इतनी सरल व सुगम होती है जिससे सामने वाला सहज ही समझ जाता है। आंखों में अमृत का अंजन और जीभ में शक्कर की प्रतिष्ठा करने में ही हमारे जीवन की सार्थकता व सफलता है। छोटी दृष्टि और दुष्ट बुद्धि जीवन के मधुर संबंधों में विष घोलकर नंदनवन जीवन को रेगिस्तान बना देती है।